SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 519
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय - 18 विदेशों में धर्म प्रचार-प्रसार की योजना' भगवान महावीर की पच्चीससौवीं निर्वाणशताब्दी मनाने के सम्बन्ध में समाजिक एवं राष्ट्रीय पत्रों में काफी विचार विमर्श चल रहा है। विभिन्न प्रकार के आयोजनों का विवरण भी आने लगा है। इसके अन्तर्गत विविध प्रकार के अप्रकाशित साहित्य, प्रचार साहित्य एवं ग्रथों के प्रकाशन की योजनाएं प्रमुख हैं। इधर कुछ दृश्य-श्रव्य सामग्री के विषय में भी समाचार आए हैं। सामान्यजन के लिए उक्त प्रकार के आयोजनों की प्रभावशीलता स्पष्ट है। इसके लिए जैनों के विभिन्न सम्प्रदाय पृथक-पृथक रूप से लाखों रूपये खर्च करने का प्रावधान कर रहे हैं। कहीं-कहीं अखिल भारतीय स्तर के नाम से भी काम हो रहा है, पर इसके अनुरूप समन्वय होता नहीं दिख रहा है, अब तक प्रकाश में आई हुई योजनाओं में ऐसे अवसरों के अनुरूप कुछ कार्यक्रमों की कमी खटकने वाली है। इनकी ओर ही मैं समाज का ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं। मेरी यह भी इच्छा है कि नीचे दिये गये कार्यक्रमों को भी उपर्युक्त अवसर के कार्यक्रमों में अवश्य सम्मिलित किया जाये। ये कार्यक्रम महावीर के उपदेशों की प्रतिष्ठा और प्रसार में पर्याप्त योगदान देंगे। प्रायः कहा जाता है कि नई पीढ़ी धर्म से विमुख होती जा रही है। इसका कारण स्पष्टतः कोई नहीं बता पाता। हां, इसे पश्चिम का प्रभाव कहकर स्वयं को संतुष्ट कर लेते हैं। भारतीय नवयुवक जब पढ़-लिखकर जीवन के क्षेत्र में आते हैं, तो उन्हें नवीन आदर्शों और समस्याओं के अनुरूप आचरण करना होता है। कभी-कभी ये आचरण प्रचलित रूढ़ियों या परम्पराओं से भिन्न जा पड़ते हैं। चूंकि समाज इन्हें अनिवार्य मानता है और इनका ही अनुसरण करता है, फलतः वह धर्म-विमुख हो गया -ऐसा कहा जाने लगता है। वस्तुतः आज का नवयुवक स्वयं को ऐसा नहीं मानता। वह अपने को वास्तविक धर्म का आचरण करने वाला मानता है। वह बहुत सी प्रचलित परम्पराओं की मान्यताओं को सत्य मानने को तैयार नहीं है। मनोरंजक तथ्य यह है कि इनमें से प्रायः ऐसी ' 'श्रमणोपासक', बीकानेर, मई 1972 में प्रकाशित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy