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________________ मन्त्र की साधकता : एक विश्लेषण : (357) कुछ प्रमुख मन्त्र भारतीय धर्म परम्परा में मन्त्र-जप एक पुण्यकारी अनुष्ठान माना जाता है। यद्यपि इसका विकास मुख्यतः आध्यात्मिक और पारलौकिक उद्देश्य से हुआ होगा, पर इनसे आनुषंगिक फल के रूप में इहलौकिक उद्देश्य और . भौतिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं। फलतः प्रमुख उद्देश्यों के अनुरूप मन्त्र भी अनेक प्रकार के होते हैं। कुछ मन्त्र आध्यात्मिक होते हैं, कुछ भौतिक कामनापरक होते हैं। और कुछ तांत्रिक (विष दूर करना आदि) होते हैं अनेक वर्गों के विशिष्ट सामर्थ्य से भी ये तथ्य प्रकट होते हैं। उदाहरणार्थ, 'म' में सिद्धि और सन्तान का सामर्थ्य होता है, 'ब एवं 'ब' में रोगादि अनिष्ट-निवारण की क्षमता होती है और 'न' और 'द' आत्मशक्ति जागृत करते हैं। इन विशिष्ट उद्देश्य वाले मन्त्रों की तुलना में, कुछ मन्त्र ऐसे होते हैं जो सभी प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। इन्हें हम मूल मन्त्र भी कह सकते हैं। हम इसी कोटि के केवल चार मन्त्रों की यहां चर्चा करेंगे। ओम् जैनों के अनुसार, यह सभी मन्त्रों का मूल है। यह पंच परमेष्ठियों के प्रथम अक्षरों के संयोग से बना है, अतः पूज्य पुरुषों और उनके गुणों का स्मरण कराता है। यह दर्शन, ज्ञान, चारित्र के त्रिरत्नों का भी प्रतीक है। इसमें तीन अक्षर हैं- अ, उ, और म्। ये क्रमशः निर्माण, विकास एवं संरक्षण तथा विनाश की प्रक्रियाओं के प्रतीक हैं। यह मन्त्र दिव्य ऊर्जा का प्रतीक है। इसे अन्य परम्पराओं में भी माना गया है। 'आमेन' इसका पश्चिमी रूप है। यह (1) तीन लोक, (2) सत्-चित्-आनन्द की त्रयी, (3) सत्व-रज-तम की त्रिगुणी, (4) वेदत्रयी, (5) देवत्रयी एवं त्रि-ब्रह्मवाद (सर्वव्यापक) आदि का प्रतीक है। यह अनन्त और शून्य (वृत्त) का भी प्रतीक है। इसके विशिष्ट वर्णों का उच्चारण सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है और साध्य-सिद्धि में उपयोगी होता है। णमोकार मन्त्र जैनों में यह मन्त्र महामन्त्र कहलाता है और इसके जप के प्रभावों से न केवल अनेक पौराणिक कथायें जुड़ी हैं, अपितु वर्तमान में भी इससे अनेक कथानक जुड़ते रहते हैं। यह मन्त्र अर्थतः अनादि है, पर शब्दतः प्रथम-द्वितीय सदी में उद्घाटित हुआ है। यह खारवेल-युगीन द्विपदी से पंचपदी में विकसित हुआ है। इसके विषय में अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं। 35 अक्षरों वाला यह मन्त्र निम्न है: णमो अरिहंताणं आई बो टू एनलाइटेन्ड्स णमो सिद्धाणं आई बो टू साल्वेटेड्स णमो आयरियाणं आई बो टू मिनिस्टर्स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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