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७ यतुर्थ सूत्रा अवतरा और यतुर्थ सूत्र ।
८ जातोंडे संगसे द्वेष ही जढता हैं; इस हेतु अतिविध - सम्यग्ज्ञानवान् प्राशी परम डी, अर्थात्-सिद्धिगति नाभ स्थान डी अथवा सर्वविरति३य यारित्र डी सत्ता हो भन डर, नरनिगोहाहि विविध हुः जोंडे ज्ञानसे युक्त हो, पापानुजन्धी नही रता है, न दूसरों से डराता है, न डरनेवाले अनुभोहन ही रता है। वह धीर मुनि, अग्र और भूल डा विवेऽ ऽर डे, ऽर्भो डा छेहन डर निष्ठुर्भहर्शी हो भता है । ← प्रश्र्चम सूत्रा अवतरा और प्रश्र्चम सूत्र । १० यह निष्ठुर्भहर्शी भएासे मुफ्त हो भता है, डेवली होर दूसरों से भी मुफ्त प्ररता है । हलोजाहि भय ो हेजनेवाला यही मुनि हलाता है। मुनि परमर्शी, विविस्तभुवी और उपशान्त सहि हो डर, पण्डितभराडी जाडांक्षा डरता हुआ संयभाराधनमें तत्पर रहे ।
११ छठा सूत्र ।
१२ पाप
जहुत प्रकार उहे गये हैं, उनो टूर डरनेके लिये संयम में धृति धरो । संयमपराया मेघावी मुनि समस्त पाथ प्रर्भोडा क्षपा डरता है ।
१३ सातवाँ सूत्रा अवतरा और सातवाँ सूत्र ।
१४ जने विषयों में जासन्तयित्त संसारी पुरुषों डी रिछाडी पूर्ति नहीं होती । जेसे पु३ष जन्यवधाहि३ पापभ में ही निरत रहते हैं ।
१५ अठवाँ सूत्र।
१६ न जन्यवधाहियों प्रा सेवन डरडे लरताहि - भैसे ोध २ न्हें निस्सार सम” पर संयमाराधन में तत्पर हुये हैं । सिलिये धनो निस्सार सम र ज्ञानी ना सेवन नहीं रे ।
१७ नवभ सूत्रा अवतरा और नवभ सूत्र ।
१८ देवली ४न्मभराशील होते हैं; इसलिये उनके सुजो ली नश्वर समर श्रुतयारित्रधर्मा सेवन रो । १८ दृशभ सूत्र ।
२० श्रुतयारित्र धर्म से आराधन में तत्थर मुनि डिसी डी हिंसा न डरे, न दूसरों से हिंसा डरावे और न हिंसा रनेवाले डी अनुभोना ही पुरे ।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
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