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________________ ४४० तत्त्वार्यसूत्रे त्पादनम् एते षट् पूर्वोक्तैश्चतुर्भिरेभिः- षभिरेवं दशभिः कारणैर्जीवस्य सातावेदनीयं कर्म वध्यते । उक्तञ्च–व्याख्याप्रज्ञप्तौ भगवतीसूत्रे ७, शतके-६ उद्देशके ___ “कहं णं भंते जीवाणं सायावेयणिज्जा कम्मा किज्जति ? गोयमा ! “पाणाणुकंपाए भूयाणुकंपाए-जीवाणुकंपाए-सत्ताणुकंपाए-बहूणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुक्खणयाए-असो. यणयाए-अजूरणयाए-अतिप्पणयाए-अपिट्टणयाए-अपरियावणयाए, एवं खलु गोयमा ! जीवाणं सायावेयणिज्जा कम्मा किजंति-" इति । कथं खलु भदन्त ! जीवानां शातावेदनियानि कर्माणि क्रियन्ते ? गौतम ! प्राणानुकम्पतया भूतानुकम्पतया-जीवानुकम्पतया सन्चानुकम्पतया बहूनां प्राणानां यावद्भूतानां जीवानां सत्त्वानाम् अदुःखनतया-अशोचनतया अजूरणतया अतेपनतया अपिट्टनतया अपरितापनतया, एवं खलु गौतम ! जीवानां शातावेदनीयानि कर्माणि क्रियन्ते इति ॥ सू०४॥ मूलसूत्रम्--"अप्पारंम्भ-अप्पपरिग्गहाइएहिं मणुस्साउए-" ॥५॥ छाया--"अल्पारम्भाऽल्पपरिग्रहादिभिर्मनुष्यायुष्यम्-" ॥५॥ तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे सातावेदनीयरूपपुण्यकर्मबन्धहेतवः प्ररूपिताः, सम्प्रतिमनुष्यायुष्यरूपपुण्यकर्मबन्धहेतून् प्ररूपयितुमाह- "अप्पारम्भ०" इत्यादि । अल्पारम्भाल्पपरिग्रहादिभिर्हेतुभिर्मनुष्यायुष्यं पुण्यकर्म बध्यते । तत्राऽल्पारम्भः—अल्पः स्तोकः आरम्भः प्राणिप्राणव्यपरोपणजनककार्यम्-तत्राल्पतापनता जिसके कारण अश्रुपात होने लगे, मुंह से लारे गिरने लगे, ऐसा शोक नहीं पहुंचाना४, अपिट्टनता लाठी आदि से नही पीटना५, अपरितापना--शारीरिक मानसिक किसी प्रकार का सन्ताप नहीं पहुंचाना६, इस प्रकार पूर्वोक्त चार प्रकार की अनुकम्पा रूप कारण तथा ये छह कारण,, इन दश प्रकार के कारणों से जीव के सातावेदनीय कर्म का बन्ध होता है। इस विषय पर व्याख्याप्रज्ञप्ति अर्थात् भगवती सूत्र शतक ७ उद्देश ६ में कहा है- 'कहं णं भंते ! जीवाणं सायावेणिज्जा कम्मा कज्जति" इत्यादि । सूत्र-४ सूत्रार्थ---"अप्पारंभ अप्पपरिग्गहाइ" सूत्र-५ अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रह आदि कारणों से मनुष्यायु का बन्ध होता है ॥५॥ तत्त्वार्थदीपिका--पूर्वसूत्र में सातावेदनीय रूप पुण्य कर्म के कारणों की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं अल्प आरंभ और अल्प परिग्रह आदि कारणों से मनुष्यायु रूप पुण्य कर्म का बन्ध होता है। आरम्भ का अर्थ है प्राणियों के प्राणों का व्यपरोपण-नाश करने वाला कार्य શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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