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________________ श्रीकल्पसूत्रे ॥३०७॥ अनशनेन छित्त्वा आलोचितप्रतिक्रान्तः पञ्चविंशतिशतसहस्राणि वर्षाणि सर्वायुष्कं पालयित्वा कालमासे कालमकरोत् ॥ सू०३५ ॥ टीका-'एवं से' इत्यादि । एवम् अमुना प्रकारेण स नन्दमुनिः दुष्कर्मनिन्दना-माणिक्षामणा-भावना-चतुश्शरण-पश्चनमस्कारा-नशनभेदात् ड्विधां-षट्मकाराम् आराधनां मोक्षमार्गानुकूलां वृत्तिम् आराध्य सम्यक पालयित्वा क्रमेण स्वधर्माचार्य-पोटिलाचार्य साधून साध्वीश्च क्षामयति । एवं वर्षशतसहस्राणि लक्षवर्षाणि अनवरतमासक्षपणेन= करके, एक मास की संलेखना से अपनी आत्मा को भावित करके, अनशन से साठ भक्त छेदकर अर्थात एक मास तक अनशन करके, आलोचना-अतिक्रमण करके, पच्चीस लाख वर्षकी समग्र आयु पूर्ण करके नन्द मुनिने काल-मास में काल किया ॥सू०३५।। टीकाका अर्थ एवं से' इत्यादि । इस प्रकार मुनि नन्दने छह प्रकार की आराधना अर्थात मोक्षमार्ग के अनुकूल वृत्ति आराधी, जैसे-दुष्कर्मनिन्दा १, खमतखामणा-दूसरों को अपनी ओर से क्षमा देना और अपनी ओर से दूसरों से क्षमा लेना २, भावना (अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन) ३, चारका-अर्हत् सिद्ध, साधु तथा धर्म का शरण ग्रहण करना ४, पंचनमस्कार-पंचपरमेष्ठी को नमन करना, ५, तथा अनशन करना ६। इन छह आराधना करके क्रम से अपने धर्माचार्य-पोट्टिलाचार्य से, अन्य साधुओं से तथा साध्वियों से क्षमायाचना की। इस तरह एक लाख वर्ष तक निरतिचार श्रमणपर्याय का पालन करके एक मास की संलेखना धारण की। अनशन से साठ भक्तों का छेदन किया। आलोचना की, प्रतिक्रमण किया। फिर पच्चीस लाख સલેખનાથી પિતાના આત્માને ભાવિત કરીને, અનશનથી સાઠ ભક્ત છેદીને એટલે કે એક માસ સુધી અનશન કરીને, આલોચના-પ્રતિક્રમણ કરીને, પચીશ લાખ વર્ષનું સમગ્ર આયુષ્ય પૂરું કરીને, નન્દમુનિએ કાલ–માસમાં કાળ કર્યો. (સૂ૦૩૫) टाने अथ-एव से' त्याल. मा शतेन भुनिय छ अनी माराधना मेरो भाक्षमासन मनु વૃત્તિ આરાધી,જેવી કે ૧-દુષ્કર્મ નિન્દા,ર-ખમતખામણા-પિતે બીજાને ક્ષમા આપવી અને બીજા તરફથી પોતે ક્ષમા લેવી. 3-लापना (अनुप्रेक्षायानु चिन्तन), ४-मत, सिद्ध, साधु तथा धर्म से यानु श२९ १४२, ५-यનમસ્કાર [ પાંચ પરમેષ્ઠીને નમન કરવું ], ૬-અનશન કરવું. એ છ આરાધનાઓનું સમ્યફ રીતે આરાધન કરીને ક્રમ પ્રમાણે પિતાના ધર્માચાર્ય પિટ્ટિલાચાર્ય તથા બીજા સાધુઓ તથા સાધ્વીઓની ક્ષમાયાચના કરી. આ રીતે એક લાખ વર્ષો સુધી નિરન્તર નિરતિચાર શ્રમણ પર્યાયનું પાલન કરીને એક માસની સંખના महावीरस्य नन्दनामकः रामपञ्चविंशतिमतमो भवः। ॥३०७॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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