SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ छाया एलापत्यगोत्रं वन्दे महागिरिं सुहस्तिनञ्च । ततः कौशिक गोत्रं, वहुलस्य सदृग्वयसं वन्दे ||२७|| अर्थ: GOV मैं एलापत्य गोत्र वाले श्रीमहागिरि और श्रीसुहत्स्याचार्यको वंदन करता हूँ, उसके बाद कौशिक गोत्र [ विश्वामित्र गोत्रोत्पन्नं ] श्री बहुलमुनिके समानवयवाले बलिस्सहजी को वन्दन करता हूं। इनमें श्रीमहागिरिजी श्रीस्थूलभद्रजी के शिष्य थे, और श्रीसुहस्तीजी भी श्रीस्थूलभद्रजी के ही शिष्य थे, श्रीमहागिरिजी के श्री बहुलजी और श्री बलिस्सहजी ये दो प्रधान शिष्य थे || २७॥ मूलम् १ २ ३ ८ ५ ६ हारियगुत्तं साइं च, वंदिमो हारियं च सामजं । वंदे कौसियगोत्तं, संडिलं अज्जजीय धरं ॥ २८ ॥ छाया हारीतगोत्रं स्वीतिं च, बन्दामहे हारीतं च श्यामार्यम् । वन्दे कौशिक गोत्रं, शाण्डिल्यमार्यजीतधरम् ॥२८॥ स्थविरावली - अर्थः म हारीतगोत्र श्री स्वात्याचार्य और हरीतगोत्र श्री श्यामार्यजी को वन्दन करता हूं, मैं का शिकगोत्र श्री शाण्डिल्याचार्य और श्रीभार्यजीतधराचार्यजी को वन्दन करता हूं, इनमें श्री स्वातिजी बलिस्सहजी के शिष्य थे, श्यामार्य श्रीस्वातिजी के शिष्य थे, किसी श्यामार्य श्री शाण्डिल्यजी काही आर्यजीतधर यह विशेषण लगाकर वन्दन कहा है, उसका अर्थ - " मर्यादादर्शक सूत्रधारक है ||२८|| मूलम् २ तिसमुद्दखाय कित्तिं, दीवसमुद्देसु गहिय पेयालं । શ્રી નન્દી સૂત્ર ६ वंदे अजसमुहं अक्खुभिय समुद्द गंभीरं ॥ २९ ॥
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy