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________________ १०५ ज्ञानचन्द्रिका टीका-अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गस्वरूपवर्णनम्. नवमाङ्गस्वरूपमाह--- मूलम्-से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ? अणुत्तरोववाइ. दयासु णं अणुत्तरोववाइयाणं नगराई उजाणाइं चेइयाई वणसंडाइं समोसरणाइं रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोगपरलोइया इढिविसेसा भोगपरिचाया पव्वज्जाओ परियागा सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमाओ उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं; पाओवगमणाई, अणुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, सुकुलपच्चायाईओ, पुण बोहिलाभा, अंतकिरियाओ आघविज्जंति। अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगठ्याए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, तिन्नि वग्गा, थावरा, सासयकडनिबद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघतज्जंति पण्णविज्जंति, परूविज्जंति, दसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति से एवंआया, एवंणाया, एवं विण्णाया" इन समस्त पदो का अर्थ आचारांग के स्वरूप का निरूपण करते समय कर दिया गया है। इस प्रकार इस अंगमें उपर्युक्त प्रकार से अन्तकृत मुनियों की चरणसत्तरी तथा करण सत्तरी का आख्यान प्रज्ञापन आदि करने में आया है। ज्ञस तरह से अन्तकृतदशाङ्ग का यह स्वरूप जानना चाहिये। सू० ५२ ॥ निकाइया, जिणपण्णता भावा, आघविज्जति पण्णविनंति परूविज्जिति दसिज्जंति, निर्देसिज्जति, उवदंसिज्जंति से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया" એ બધાં પદને અર્થ આચારાંગ સૂત્રનું સ્વરૂપનિરૂપણ કરતી વખતે આપી દીધા છે. આ રીતે આ અંગમાં ઉપર કહ્યા પ્રમાણે અંતકૃત મુનિઓની ચરણ સત્તરી તથા કરણ સત્તરીનું આખ્યાન, પ્રજ્ઞાપના આદિ કરવામાં આવ્યું છે. આ રીતે અંતકૃતદશાંગનું આ સ્વરૂપ સમજવું કે સૂ. પર છે શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
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