SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 549
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानचन्द्रिका टीका - व्यञ्जनाक्षरनिरूपणम्. ४४५ एवमेव एकाक्षराने काक्षभेदेन व्यञ्जनाक्षरं द्विविधम् । तत्रैकाक्षरं - धीः श्रीरित्यादि । अनेकाक्षरं - वीणा, लता, माला, इत्यादि । अथवा - संस्कृतप्राकृतभाषाभेदेन द्विविधम् । यथा - वृक्षः, रुक्खो - इति । तथा - नानादेशानाश्रित्य तद् व्यञ्जनाक्षरमनेकविधम् । यथा- मागधानाम् - ओदनः 'चावल' इति भाषा प्रसिद्धः, arti 'कूर : '. द्राविडानां 'चौरः', आन्ध्राणाम्- 'इडाकु ' - रिति नाम प्रसिद्धम् । केवल एक अलोकाकाशरूप पर्याय ही है। इसी तरह स्थण्डिल शब्द का अभिधेय एक स्थण्डिलरूप पर्याय ही है । " , " लोक " यह व्यंजनाक्षर अनेक पर्यायवाला है, क्यों कि इसके जगत, भुवन, संसार आदि अनेक अभिधेय-नाम होते हैं। एकाक्षर, अनेकाक्षर, इस तरह से भी व्यंजनाक्षर दो प्रकार का बतलाया गया है । जिसमें केवल एक ही अक्षर होता है वह एकाक्षर व्यंजनाक्षर है - जैसे- धी, (बुद्धि) श्री आदि अक्षर । अनेक अक्षर जिसमें होते हैं वह अनेकाक्षर व्यंजनाक्षर है, जैसे- वीणा, लता, माला आदि शब्द । अथवा संस्कृत एवं प्राकृत आदि के भेद से भी यह व्यंजनाक्षर दो प्रकार का माना गया है - ' वृक्ष' शब्द संस्कृत और 'रुक्ख ' शब्द प्राकृत है । अथवा नाना देशों की अपेक्षा व्यंजनाक्षर अनेक प्रकार का भी बतलाया गया है - जैसे-मगधदेश में चावलों को 'ओदन' कहते हैं, लाटदेश में 'क्रूर' कहते हैं, द्राविडदेश में 'चौर' कहते हैं और आंध्रदेश में 'इकु' कहते हैं । , કેવળ એક અલાકાકાશ રૂપ પર્યાય જ છે. એજ રીતે સ્થઝિલ શબ્દનું અભિધ્યેય એક સ્થડિલરૂપ પર્યાય જ છે. " " આ વ્યંજનાક્ષર અનેક પર્યાયવાળા છે. કારણ કે તેના જગત, ભુવન, સંસાર આદિ અનેક અભિધેય થાય છે. એકાક્ષર, અનેકાક્ષર, આ રીતે પણ વ્યંજનાક્ષર બે પ્રકારનુ ખતાવ્યુ` છે. જેમાં ફકત એક જ અક્ષર હાય છે તે એકાક્ષર વ્યંજનાક્ષર છે જેમકે-ધી, શ્રી આદિ અક્ષર. જેમાં અનેક અક્ષર હેાય છે તે અનેકાક્ષર વ્યંજનાક્ષર છે; જેમકે विद्या, सती, भाषा, माहि शब्द. "" અથવા સંસ્કૃત અને પ્રાકૃત આદિના ભેદથી પણ એ વ્યજનક્ષર એ प्रहार भनाय छे." વૃક્ષ शब्द संस्कृत भने “रुक्ख" शब्द प्राहृत छे, અથવા વિવિધ દેશોની અપેક્ષાએ વ્યંજનાક્ષર અનેક પ્રકારનું પણ ખતાવ્યુ છે ঈभडे भगध देशभां थोमाने 'ओदन' हे छे, वाटमां "कूर" अहे छे. द्राविड देशमां “चौंर" हे छे भने देशमां "इडाकु " हे छे. શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy