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________________ २९७ %3 ज्ञानवन्द्रिकाटीका-शानभेदाः। (स्त्रीमोक्षसमर्थनम् ) तत्रोच्यते-मिथ्यादृष्टेः सदसद्विवेकपरिज्ञानाभावात् । तथाहि-मिथ्याष्टिः खलु सर्वमप्येकान्तवादपुरःसरं प्रतिपद्यते, न तु सर्वज्ञभगवदुक्तस्याद्वादमाश्रित्य, ततश्च मिथ्याष्टियंदा 'घट एवाय'-मिति वदति तदा तसमिन् घटे घटत्वपर्यायव्यतिरेकेण शेषान् सत्त्व-ज्ञेयत्व-प्रमेयत्वादीन् सतोऽपि धर्मानपलपति, अन्यथा'घट एवाय '-मित्येकान्तेनाऽवधारणानुपपत्तेः । 'घटः सन्नेव ' इति यदा ब्रूते, तदा पररूपेण नास्तित्वस्यानभ्युपगमादसद्भूतं पररूपमपि तत्रास्तीति प्रतिपद्यते । ततश्च सन्तमसन्तं मन्यते, असन्तं च सन्तं मन्यते, इति सदसद्विशेषपरिज्ञानाभावान्मिथ्यादृष्टेमैतिश्रुते अज्ञानरूपे भवतः ॥ १॥ __उत्तर-मिथ्यादृष्टि को सत् और असत् का विवेकज्ञान नहीं है। समस्त वस्तुओं को वह एकान्तधर्मविशिष्ट ही जानता है, कारण कि एकान्तवाद का ही वह अवलम्बन करता है, भगवत्कथित स्यावाद का नहीं । जब वह “घट एवायम्" यह घट ही है, ऐसा कहता है तब उस घटमें वर्तमान सत्त्व, ज्ञेयत्व, प्रमेयत्व आदि धर्मोंका वह अपलाप करता है । यदि ऐसा वह नहीं करता है तो फिर “यह घट ही है" इस प्रकार का वह अवधारण क्यों करता है। तथा “घटः सन्नेव" घट सत्स्वरूप ही है, ऐसा जब वह कहता है तो उसके इस कथन से पररूप की अपेक्षा भी घटमें अस्तित्व धर्म है, इस बात को भी उसे कबूल करना पड़ेगा, क्यों कि पररूप की अपेक्षा उसमें नास्ति-शब्द का प्रयोग नहीं किया है । इस तरह वह मिथ्यादृष्टि सत को असत् और असत् को सत् मानता है, अतः सत् और असत् में इसकी दृष्टि में कोई न होने से उस मिथ्यादृष्टि का मतिज्ञान और श्रुतज्ञान अज्ञानरूप माना जाता है। ઉત્તર–મિથ્યાષ્ટિને સત્ અને અસત્ નું વિવેકજ્ઞાન હોતું નથી. સમસ્ત વસ્તુઓને તે એકાન્તધર્મવિશિષ્ટ જ જાણે છે, કારણ કે એકાન્તવાદનું જ તે समन ४२ छ, भगवान मांगेर स्याहार्नु नहीं. न्यारे ते “ घट एवायम् " "240 ५ ४ छे” ये ४थन ४२ छ त्यारे ते घटमा २८ सत्प, शेयत्व, પ્રમેયત્વ આદિ ધર્મોને તે અપલાપ કરે છે. જે તે એવું કરતો ન હોય તે પછી "24 घडी ४ छ” म प्रा२नु अवधारण ते ॥ भाटे ४२ छ ? तथा “घटः सन्नेव" "सत्१३५१ छ" मे न्यारे ते ४ त्यारे तेन॥ २॥ કથનથી પરરૂપની અપેક્ષાએ પણ ઘડામાં અસ્તિત્વ ધર્મ છે એ વાત પણ તેને કબૂલ કરવી પડશે, કારણ કે પરરૂપની અપેક્ષાએ તેમાં નાતિ શબ્દને પ્રયોગ या नथी. २॥ रीत ते मिथ्याट सत् न असत् भने असत् ने सत् माने છે, તેથી તેની દૃષ્ટિએ સત્ અને અસમાં કેઈ ભેદ ન હોવાથી તે મિદષ્ટિનું મતિજ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન અજ્ઞાનરૂપ માનવામાં આવ્યું છે. न० ३८ શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
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