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________________ नन्दीसूत्रे " मतिश्रुतावरणाचक्षुर्दर्शनावरणान्तरायप्रकृतीनां च सदैव देशघातिरसस्पर्धकानामेवोदयः। ततस्तासां सदैवौदयिकक्षायोपशमिको भावौ" इति । 'तं समासओ' इत्यादि । तत् अवधिज्ञानं, समासतः संक्षेपेण षड्विधं= षट्प्रकारक, प्रज्ञप्त-प्ररूपितम् । तद् यथा-आनुगामिकम् १, अनानुगामिकम्२, वर्धमानकं ३, हीयमानकं ४, प्रतिपातिकम् ५, अप्रतिपातिकम् ६, इति । तत्रानुगामिकम्-अनुगमनशीलम् , यदवधिज्ञानं गच्छन्तमवधिज्ञानिनं लोचनवदनुगच्छति, तदिति भावः १॥ अनानुगामिकम्-यद् गच्छन्तमवधिज्ञानिनं नानुगच्छति शृंखलापतिबद्धप्रदीपवत् , तदित्यर्थः २। वर्धमानकम्-वर्धते, इति वर्धमानं, ___ "मतिश्रुतावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण एवं अन्तराय प्रकृतियों के देशघातिरसस्पर्धकों का ही सदा उदय रहता है अतः उनके सदा ही औदयिक एवं क्षायोपशमिक भाव होते हैं।" ___ वह अवधिज्ञान संक्षेप से छह प्रकार का बतलाया गया है-(१) आनुगामिक, (२) अनानुगामिक, (३) वर्धमानक, (४) हीयमानक, (५) प्रतिपातिक, (६) अप्रतिपातिक । जिस प्रकार दूसरे क्षेत्रमें जाते हुए मनुष्य के साथ उसकी आंखें साथ जाती हैं उसी प्रकार जो अवधिज्ञान अवधिज्ञानी के साथ दूसरी जगह चले जाने पर साथ जाता है उसका नाम आनुगामिक अवधिज्ञान है १। सांकल से जकडे हुए दीपककी तरह जो अवधिज्ञान अपने उत्पत्तिस्थान को छोड देने पर जीव के साथ नहीं जाता है वह अनानुगामिक है २ । जैसे शुक्लपक्ष का चंद्रमंडल प्रतिदिन बढता रहता है उसी प्रकार जो अवधिज्ञान उत्पत्ति कालमें अल्पविषयक होनेपर भी परिणामशुद्धि बढ़ने के साथ ही क्रमशः अधिक २ “મતિશ્રતાવરણ, અચક્ષુર્દશનાવરણ, અને અન્તરાય પ્રકૃતિના દેશઘાતિરસસ્પર્ધકોને જ સદા ઉદય રહે છે, તેથી તેમનામાં હંમેશા જ ઔદયિક અને ક્ષાપમિક ભાવ હોય છે. ते भवधिज्ञान संक्षिप्तमा छ प्रा२नु मतावायु छ–(१) २मानु॥भि, (२) मनानुगाभि, (3) भान, (४) डायमान, (५) प्रतिपाति सन (6) અપ્રતિપાતિક. (૧) જે રીતે બીજા ક્ષેત્રમાં જતાં મનુષ્યની સાથે તેની આંખ જાય છે એ જ રીતે જે અવધિજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાનીની સાથે બીજી જગ્યાએ જતાં પણ સાથે જ જાય છે તેનું નામ આનુવામિક અવધિજ્ઞાન છે. (૨) સાંકળની સાથે જકડેલા દીવાની જેમ જે અવધિજ્ઞાન પિતાનાં ઉત્પત્તિસ્થાનને છોડી દેવાતાં જીવની સાથે જતું નથી તે અનાનુગામિક છે. (૩) જેમ શુકલપક્ષનું ચન્દ્ર શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
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