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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे तत्क्षयात्कं गुणं प्राप्नोति इत्याहमूलम्-सव्वं तओ जाणई पासई ये, अमोहंणो होई निरंतराँए । अणासवे झाणसमाहिजुत्तो, आउखए मुक्खमुवेई सुद्धे ॥१०९॥ छाया-सर्व ततो जानाति पश्यति च, अमोहनो भवति निरन्तरायः। अनास्रवः ध्यानसमाधियुक्तः, आयुक्षये मोक्षमुपैति शुद्धः॥१०९॥ टीका-'सव्वं तओ' इत्यादि । ततः ज्ञानावरणादिक्षयात् जीवः-सवं जानाति-विशेषरूपत्वेनावगच्छति । तथा-पश्यति च सामान्यरूपेण प्रत्यक्षीकरोति, च इति समुच्चयाऽर्थः, एवञ्च समुवयस्य भेदविषयत्वात् , ज्ञानदर्शनयोः पृथगुपयोगरूपत्वं सचितम् , तथा-अमोहनःमोहरहितो भवति, तथा-निरन्तरायः निष्क्रान्तोऽन्तरायो यस्मात् स तथा, तथा -अनास्त्रवः कर्मबन्धजनकहिंसादि रूपासवरहितो भवति, तथा-ध्यानसमाधियुक्तः ज्ञानावरणीयादि चार घातीकर्मों के नाश होने पर किस गुण की प्राप्ति होती है ? सो कहते हैं-'सव्वं ' इत्यादि । ___ अन्वयार्थ-(तओ-ततः) ज्ञानावरण आदि कर्मों के क्षय के बाद (जीवे-जोवः ) जीव अनंत दर्शन एवं अनंतज्ञान की प्राप्ति हो जाने के कारण (सव्वं जाणइ पासइ य-सर्व जानाति पश्यति च ) समस्त पदार्थों जानने लगता है और सामान्य रूप से सब पदार्थों को देखने लगता है। ज्ञानोपयोग में पदार्थों का विशेषरूप से बोध होता है तथा दर्शनोपयोग में पदार्थों का सामान्यरूप में बोध होता है इस तरह ये दोनों उपयोग पृथक हैं । (अमोहणो निरंतराए होइ-अमोहनो निरन्तरायः भवति) इस समय जीव मोहरहित एवं अन्तराय कर्मरहित होता है तथा જ્ઞાનાવરણીયાદિ ચાર ઘાતી કર્મોને નાશ થવાથી કયા ગુણની પ્રાપ્તિ थाय छ १ तेन ४ छ-" सव्वं " त्या । मन्वयार्थ-तओ-ततः ज्ञाना१२९यादि भीना क्षय पछी जीव-जीवः १ मनात शन भने अनंत ज्ञाननी प्राप्ति थपान १२ सव्वं जाणइ पासइय-सर्व जानाति पश्यति च समस्त पहायान वा साणे छ. मन સામાન્ય રૂપથી સઘળા પદાર્થોને જોવા માંડે છે. જ્ઞાનપગમાં પદાર્થોને વિશેષ રૂપથી બાધ થાય છે તથા દર્શન ઉપગમાં પદાર્થોને સામાન્ય રૂપમાં બેધ शाय. ॥शत से अन्न उपयोग २) -म छे. अमोहणो निरंतराउ होइ-अमोहनो निरन्तरायः भवति । समय ०१ माडडित मन मतशय उत्तराध्ययन सूत्र:४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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