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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. २३ श्रीपार्श्वनाथचरितनिरूपणम् अथाचारमाणिधिविषयं संशयं स्पष्टपतिमूलम्-अचेलंगो ये जो धम्मों, जो इमों' संतरुत्तरो। एगकज्जपवन्नाणं, विसे से किं नु कारणं ? ॥१३॥ छाया--अचेलकश्च यो धर्मो, योऽयं सान्तरोत्तरः । एककार्यप्रपन्नयोः, विशेषे किं नु कारणं ? ॥१३॥ टीका--'अचेलगो य' इत्यादि ।। यश्चायम् अवेलकः-अचेलं मानोपेतं श्वेतं जीर्णप्रायमल्पमूल्यं वस्त्रम् ,अर्थात्अप्तदिव चेलं, तदस्यास्तीति-अचेलः, स एवाचेलकः-परिमितजीर्णपायाल्पमूल्यश्वेतवस्त्रपरिधानलक्षणो धर्मो भगवता वर्धमानेन देशितः । यश्चायं सान्तरोत्तरःसान्तराणि-मानतो वर्णतश्च विशिष्टानि, उत्तराणि बहुमूल्यानि च सान्तरोत्तराणि तानि सन्त्यस्मिन्निति सान्तरोत्तरः-अनेक वर्ण बहुमूल्य वस्त्रपरिधानलक्षणो धर्मों भगवता पार्श्वनाथेन देशितः। एककार्यप्रयन्नयोः-एककार्य-मुक्तिरूपफलं, तदर्थ परिग्रह विरमण इस प्रकार से पांच प्रकाररूप मुनिधर्म कहा है सो इसका क्या कारण है। इस प्रकार का उन दोनों तीर्थंकरों के शिष्यों को संदेह हुआ।।१२।। अब मूत्रकार आचारप्रणिधि विषयक संदेह को प्रगट करते हैं'अचेलगो' इत्यादि। ___ अन्वयार्थ-(जो अचेलगो य धम्मो-यः अचेलकः धर्मः) प्रभु श्रीवर्द्धमान स्वामी ने जो यह अचेलक-परिमित, जीर्णप्राय तथा अल्पमूल्यवाले श्वेतवस्त्रों का परिधान करनारूप मुनिधर्म बतलाया है तथा (जो संतरुत्तरो-यः अयं सान्तरोत्तरः) पार्श्वनाथ स्वामी ने जो अपने शिष्यों को प्रमाण से एवं वर्ण से विशिष्ट तथा उत्तर- बहमूल्य वस्त्रों का परिधान करनारूप मुनिधर्म कहा है सो (एकक जपवन्नाणं विसेसे किंनु પરિગ્રહ વિરમણ આ પ્રમાણે પાંચ પ્રકારનો મુનિધર્મ કહેલ છે. તો તેનું શું કારણ છે? આ પ્રકારને એ બને તીર્થકરોના શિષ્યોને સંદેહ થયે. ૧રા वे सूत्र४२ माया२ प्रविधि विषय सडने प्रगट ४२ थे- "अचेलगो" त्यादि ! अन्वयार्थ:--जो अचेलगो य धम्मो-यः अचेलकः धमः प्रभु श्रीमान સ્વામીએ જે આ અચલક-પરિમિત જીર્ણપ્રાય તથા અ૫ મૂલ્યવાળા સફેદ વસ્ત્રોને ५२थान ४२१॥ ३५ मुनियम याद छ. तथा जो संतरुत्तरो-यः अयं सान्तरोत्तरः પાર્શ્વનાથ સ્વામીએ પિતાના શિષ્યોને પ્રમાણથી અને વર્ણથી વિશિષ્ટ અને બહુમૂલ્ય पसीने परिधान ४२११३५ मुनियम तावेद छ. ते एककज्जपवन्नाणं विसेसे ૧૧૨ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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