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________________ ६१४ उत्तराध्ययनसूत्रे अमुमेवार्थ विशेषतः प्राह-- मूलम्-- तमंतमेणेव उ से असीले, सया दुही विष्पस्यिासुवेई । संघावइ नरगतिरिक्खजोणी, मोणं विरहित्तु असाहुरूपे ॥४६॥ छाया--तमम्तमसैव तु सोऽशीलः, सदा दुःखी विपर्यासमुपैति । सन्धावति नरकतियग्योनी:, मौने विराध्य असाधुरूपः ॥४६॥ टीका--'तमंतमे' इत्यादि । अशील:-शीलवर्जितः अतएव असाधुरूप तत्वतोऽस्यतस्वभावः स द्रव्यमुनिः तमस्तमैव-प्रगाढमिथ्यात्वेनैव हेतुना मोनं-चारित्रं विराध्य दृषयित्वा भावार्थ-जो मुनिजन अपने निर्वाह के लिए स्त्री पुरुषों के शुभाशुभ चिह्नो का फल उनको कहते हैं तथा स्वप्नों का इष्टानिष्ट फल प्रदर्शित करते हैं, पुत्र आदि की प्राप्ति निमित्त जो गंडा तावाज देते है-अमुक स्थान पर स्नान करना कहते है, मंत्र तंत्र आदि विद्याओं से जो कि ज्ञानावरणीयादि कर्मासव के कारण हैं अन्यजनों को विमोहित कर अपना निर्वाह करते हैं वे सब द्रव्यमुनि हैं। इनके ये कर्तव्य नरक तिर्यञ्च आदि योनियों के दुःखों से इनको बचा नहीं सकते हैं ॥४५॥ इसी अर्थ को विशेष रूप से कहते हैं--'तमं तमेणेब' इत्यादि। अन्वयार्थ-( असीले-अशीलः ) शीलवर्जित होने की वजह से (असाहुरूवे-असाधुरूपः) तत्वतः असंयत स्वभाव का (से-सः) वह द्रव्यमुनि (तमं तमेणेव-तमस्तमसा एवं ) प्रगाढ मिथ्यात्व से युक्त होने के कारण (मोणं-मौनम् ) चारित्र की (विराहित्तु-विराध्य विरा ભાવાર્થ.... જે મુનિજન પિતાના નિર્વાહ માટે સ્ત્રી પુરૂષના શુભશુભ ચિહોના ફળને કહે છે, તથા સ્વપ્નનાં સારાં મીઠાં ફળને સંભળાવે છે, તથા પુત્ર આદિની પ્રાપ્તિ નિમિત્તે જે તાવીજ વિગેરે બનાવી આપે છે, અમુક સ્થાન ઉપર સ્નાન કરવાનું કહે છે, મંત્રતંત્ર આદિ વિદ્યાઓથી કે જે જ્ઞાનાવરણીયાદી આસવનું કારણ છે. અન્ય જનોને વિમોહિત કરી પિતાનો નિર્વાહ કરે છે તે સઘળા દ્રવ્ય મુનિ છે. તેમના એ કત નરક તીય આદિ યોનીઓનાં દુખેથી તેમને બચાવી શકતાં નથી. I૪પા मे मथने विशेष ३५श्री छ-"तमं तमेणेव" या ! सन्याय-असीले अशील: शासने पाणना। नवाना ॥२९थी त असाहुरूवे-आसाधुरूपः द्रव्यमुनि तमं तमेणे-तमस्तमसा एवं प्रसाद मिथ्यापथा मरेसा पाना २0 मोणं-मौनम् यात्रिनी विराहि-विराध्य विराधना परीने ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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