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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे मानुषी योनि के प्राप्नुवन्तीति प्रदर्शयति मूलम्वौयाहि सिक्खाहि, जे नरा गिहिसुव्वया। उति माणुसं जोणिं, कम्मसच्चा है पाणिणो ॥ २०॥ छाया-विमात्राभिः शिक्षाभिः, ये नरा गृहिसुव्रताः । उपयान्ति मानुषीं योनि, कर्मसत्याः खलु माणिनः ॥ २० ॥ टीका-'वेमायाहिं' इत्यादि। ये नरा गृहिसुव्रताः गृहिणश्च ते सुव्रताश्चेति तथा-धृतसत्पुरुषत्रता गृहस्था: भवन्ति, न तु आगमोक्तव्रतधारिणः, देवगतिप्रापकतयैव तदभिधानात् । ते विमात्राभिः विविधपरिणामाभिः शिक्षाभिः प्रकृतिभद्रकत्वप्रकृतिविनीतत्व सानुकोशत्वा-मत्सरिकत्वा-भ्यासरूपाभिः मानुषीं योनिमुपयान्ति । 'हु' खलु माणिनः कर्मसत्याः सत्यानि-अबध्यफलानि कर्माणि-ज्ञानावरणीयादीनि येषां ते तथा मनुष्य योनि किस को प्राप्त होती है ? सो कहते हैं'वेमायाहिं सिक्खाहिं'- इत्यादि । अन्वयार्थ (जे नरा-ये नराः ) जो मनुष्य (गिहि सुव्वया-गृहि सुव्रताः) गृहस्थ एवं सत्पुरुष होने रूप व्रत के धारण करते हैं-आगमोक्त १२ बारह व्रतों को नहीं, क्यों कि आगमोक्त व्रतों के धारण करनेसे देवगतिका ही बंध होता है, मनुष्यगतिका नहीं । (ते-ते) वे (वेमायाहिं सिक्खाहि-विमात्राभिः शिक्षाभिः) प्रकृति से, भद्र, विनीत, दयालु एवं ईर्ष्याभाव से रहित होने रूप विविध परिणामवाली शिक्षाओं से (माणुसं जोगि उति-मानुषीं योनिमुपयान्ति) मनुष्यसंबंधी योनि में जन्म लेते हैं । क्यों कि (हु पाणिणो कम्मसच्चा - अतः कर्मसत्याः प्राणिनः ) प्राणियों के ज्ञानावरणीयादिक कर्म अवंध्य फलवाले होते हैं। भनुष्य योनी ने प्रात याय छे ते छे.- 'वेमायाहि सिक्खाहि-त्यादि मन्वयार्थ-जे नरा-ये नरा २ मनुष्य गिहिसुव्वया - गृहि सुबताः शृश्य અને પુરુષ હવા રૂપ વ્રતને ધારણ કરે છે. આગમમાં બતાવેલાં શ્રાવકેનાં ૧૨ બાર વ્રતની અહીં વાત નથી કારણ કે આગમોત વ્રતનું પાલન કરવાથી भनुष्यातिन। म था नथी, ५५ हेमतिनी थाय छे. वेमायाहिं सिक्खाहि-विमात्राभिः शिक्षाभिः रे प्रकृतिथी सद्र, विनीत, या मने र्षा लाथी डित डा ३५ विविध परिणाम पाजी शिक्षायोथी माणुसं जोणि उर्वति-मानुषी योनिमुपयान्ति मनुष्य जधि योनीमा मलेछ , हु पाणिणो कम्मसच्चा ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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