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________________ अध्ययन ४ गा० उ. १ गा ३०-३१ संहरणस्य चतुर्भङ्गयः निक्षिप्य एकस्योपर्यन्यस्य निक्षेपणं कृत्वा । निक्षेपणं च त्रिधा-सचित्तमचित्तंमिश्रं चेति, एतानाश्रित्य तिस्रश्चतुर्भङ्गयो भवन्ति । तत्र [१] सचित्ता-ऽचित्तयोश्चतुर्भङ्गी यथा (१) सचित्ते सचित्तस्य, (२) सचित्तेऽचित्तस्य, (३) अचित्ते सचित्तस्य, (४) भचित्तेऽचित्तस्य निक्षेपणम् ॥१॥ [२] सचित्तमिश्रयोश्चतुर्भङ्गी यथा-- (१) सचित्त सचित्तस्य, (२) सचित्ते मिश्रस्य, (३) मिश्रे सचित्तस्य, (४) मिश्रे मिश्रस्य निक्षेपणम् ।। [३] अचित्त-मिश्रयश्चोतुर्भङ्गी यथा (१) अचित्तेऽचित्तस्य, (२) अचित्ते मिश्रस्य, (३) मिश्रेऽचित्तस्य, (४) मिश्रे मिश्रस्य निक्षेपणमिति ॥३॥ विखरजाना और अप्रीति होना आदि दूषण होते हैं । जैसे किसी दाताने बहुत गीलेका या बहुत सूखेका संहरण करनेके लिए बड़ा भारी वर्त्तन उठाया तो उसे कष्ट होगा । निक्षेपण दोष तीन प्रकारका है-(१) सचित्त, (२) अचित्त, (३) मिश्र । इन तीनोंको आश्रित करके तीन चौभंगियाँ होती हैं। [१] सचित्त-अचित्तको चौभंगी (१) सचित्तपर सचित्तका, (२) सचित्त पर अचित्तका, (३) अचित्त पर सचित्तका, (४) अचित्त पर अचित्तका ॥१॥ [२] सचित्त-मिश्रकी चौभंगी (१) सचित्त पर सचित्तका, (२) सचित पर मिश्रका, (३) मिश्रपर सचित्तका, (४) मिश्र पर मिश्रका निक्षेप करना ॥२॥ [३] अचित्त-मिश्रको चौभंगी દાતાએ બહુ લીલાનું યા બહુ સૂકાનું સહરણ કરવાને માટે બહુ ભારે વાસણ ઉપાડયું હોય તેને કષ્ટ થાય. निA५ ५ ५ ५४२ने छ. (१) सायत, (२) अथित्त, (3) मिश्र. मे ने આશ્રિત કરવાથી ત્રણ ચૌભંગીઓ થાય છે. [१] सायत्त.भयित्तनी थीमा (१) सयित्त ५२ सायत्तनु, (२) सायत्त५२ मयित्तनु', (3) भयित्त ५२ सथित्तनु. (४) सचित्त ५२ अथित्तनु १८ (२) सायत्त भिटनी यौली (१) सयित्त५२ सयित्तनु (२) सथित्त५२ मिश्रनु (3) भिश्र५२ सथित्तनु ४)) મિશ્ર પર મિશ્રનું, નિક્ષેપણ કરવું. રા [3] भयित्त- भिनी यौम શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧
SR No.006367
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages480
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size27 MB
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