SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्ययन. ५ उ. १ गा० ३०-३१ संहरणस्य चतुर्भङ्गयः ३२५ अचित्तेऽचित्तस्य संहरणम् । एषु चतुर्थो भङ्गो ग्राह्यः । अस्यापि चत्वारा भङ्गा भवन्ति, तद्यथा (१) शुष्के शुष्कस्य, (२) शुष्के आर्द्रस्य, (३) आर्द्रे शुष्कस्य, (४) आ आर्द्रस्य संहरणम् । एतेऽपि पुनः प्रत्येकं स्वगताल्पत्वबहुत्वाभ्यां भिन्नाञ्चतुर्भङ्गान् भजन्ते । तत्र [१] 'शुष्के शुष्कस्ये' -त्येतदाख्यप्रथमभङ्गस्य चतुर्भङ्गी यथा (१) अल्पशुष्के अल्पशुष्कस्य, (२) अल्पशुष्के बहुशुष्कस्य, (३) बहुशुप्केऽल्पशुकस्य, (४) बहुशुष्के बहुशुष्कस्य संहरणम् । [२] 'शुष्के आर्द्रस्ये' - स्येतद्द्वीतीयभङ्गस्य चतुर्भङ्गी यथा (१) अल्पशुपास्य, (२) अल्पशुष्के महार्द्रस्य, (३) बहुशुष्केऽल्पास्य, (४) (१) सचित्त में सचित्तका, (२) सचित्तमें अचित्तका (३) अचित्त में सचितका, (४) अचि - तमें अचित्तका । इन चार भंगोंमेंसे चौथा भंग साधुको कल्पनीय है । इसके भी चार भंग होते हैं - (१) सूखे में सूखेका (२) सूखेमें गीलेका । (३) गीलेमें सूखेका, (४) गीले में गीलेका । ये चारों भंग भी अल्पता और बहुलताके भेदसे चार चार प्रकारके होते हैं- [१] 'सूखेमें सूखेका' इस प्रथम भंगकी चौभंगी इस तरह है- (१) थोड़े सूखेमें थोड़े सूखेका, (२) थोड़े सूखेमें बहुत सूखेका । ( ३ ) बहुत सूखे में थोड़े सूखेका, (४) बहुत सुखेमें बहुत सूखेका । [२] 'सुखेमें गीलेका' इस दूसरे भंगकी चौभंगी (१) थोड़े सुखेमें थोड़े गोलेका, (२) थोड़े सूखेमें बहुत गीलेका, (३) बहुत सूखेमें (१) सचित्तमां सत्तिनु, (२) सत्तिमां अत्तिनुं (3) अभित्तमां सत्तिनु, (४) અચિત્તમાં અચિત્તનુ', એ ચાર ભાંગામાંથી ચેાથેા ભાંગે સાધુને માટે કલ્પનીય છે. એના પણ ચાર ભાંગા थाय छे. [१] सूमाभां सूठानु, (२) सूप्रभां बीबानु, (3) सीसामां सूअनु अने (४) सीसामां —— सीसांनु. એ ચાર ભાંગે પણ અપતા અને બહુલતાના ભેદ કરીને ચાર ચાર પ્રકારના થાય છેઃ— [૧] ‘સૂકામાં સૂકાનુ' એ પ્રથમની ચૌભ’ગી આ પ્રમાણે છેઃ (१) थोडा सूाभां थोडा सुमनुं, (२) थोडा सूझमां जहु सूभानु, (3) बहु सूडामां થેાડા સૂકાતુ, (૪) બહુ સૂકામાં ખડ઼ે સૂકાતું, [२] 'सुप्रभां सीसानु मे मील लांगानी योलगी શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્ર ઃ ૧
SR No.006367
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages480
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy