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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू० २२ नक्षत्राणां देवताद्वारनिरूपणम् ३३७ ननु यदा नक्षत्राणि स्वयमेव देवतारूपाणि तदा तत्र देवतान्तर स्वीकारे का युक्तिस्तदभावाच्च कथं नक्षत्रेषु देवतानामाधिपत्यमिति चेदत्रोच्यते-पूर्वभवोपार्जिततपस्तारतम्येन तपसः फलस्यापि तारतम्यदर्शनात् मनुष्यवत्, देवेष्वपि सेव्यसेवकभावस्यापि प्रतिपादनात, यदाह-'सकस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो इमे देवा आणा उववायवयणणिद्देसे चिटुंति तं जहा-सोमकाइया सोमदेवकाइया विज्जुकुमारा विज्जुकुमारीओ अग्गिकुपारा अग्गिकुमारीओ वाउकुमारा वाउकुमारीओ चंदा सूरा गहा णक्खत्ता ताराख्वा जे आवण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारणो आणावयणणिदेसे चिटंति' ____ अतः इसी अभिप्राय को लेकर यहां गौतमस्वामीने इन नक्षत्रों के कौन कौन देवता है और प्रथम नक्षत्र का कौन देवता है यह जानने के लिये प्रश्न किया है। शंका-जब नक्षत्र स्वयं ही देवता रूप है तो फिर इन के देवतान्तर मानने में क्या युक्ति है ? यदि इस सम्बन्ध में कोई युक्ति नहीं है तो फिर नक्षत्रों में देवताओं का अधिष्ठान कैसे हो सकता है ? उत्तर-पूर्व भव में उपार्जित तपकी तरतमता से तपके फल में भी तरतमता देखी जाती है मनुष्य की तरह देवों में भी सेव्य सेवक भावका प्रतिपादन तो शास्त्र में हुआ ही है जैसा कि 'सकस्स देविंदस्स देवरणो सोमस्स महारण्णो इमे देवा आणाउववायवयान. देसे चिट्टति-तं जहा सोमकाइया, सोमदेवकाइया विज्जुकुमारा विज्जुकुमारी ओ अग्गिकुमारा अग्गिकुमारीओ वाउकुमारा वाउकुमारीओ चंदा सूरा गहाणक्खत्ता तारारूवा जे आवण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भतिया तवभारिया सकस्स देविंदस्स देवरणो सोमस्त महरण्णो आणावयणणिद्देसे चिट्ठति' इस ગૌતમસ્વામીએ આ નક્ષત્રોના કયા કયા દેવતા છે અને પ્રથમ નક્ષત્રના કયા દેવતા છે એ જાણવા માટે પ્રશ્ન કર્યો છે. શંકા-જ્યારે નક્ષત્ર જાતે જ દેવતા રૂપ છે તે પછી એમને દેવતાન્તર માનવા પાછળ શું પ્રયોજન છે? જે આ સમ્બન્ધમાં કોઈ પ્રજન નથી તે પછી નક્ષત્રમાં દેવતાઓનું અધિષ્ઠાન કઈ રીતે હોઈ શકે? ઉત્તર-પૂર્વભવમાં ઉપાર્જિત તપની તરતમતાથી તપના ફળમાં પણ તરતમતા જોવામાં આવે છે. મનુષ્યની જેમ દેવામાં પણ સેવ્યસેવક ભાવનું પ્રતિપાદન તે શાસ્ત્રમાં થયું જ छ २म 'सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो इमे देवा आणा उवायवयणा निदेसे चिटुंति-तं जहा सोमकाइया सोमदेवकाइया विज्जुकुमारा विज्जुकुमारीओ अग्गिकुमारा अग्गिकुमारीओ वाउकुमारा वाउकुमारीओ चंदासूरागहा णक्खत्ता तारारूवा जे आवण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तभत्तिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरणो सोमस्स महारण्णो आणावयण णिदेसे चिटुंति' मा शास्त्रान्तरन। ५४२मा थयु छे. मतिसरण हावाथी अमे मा ५४२ानी ज०४३ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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