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________________ _ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे त्स्नं समस्तं सकलपदार्थविषयत्वात् प्रतिपूर्णम् सूत्रतोऽक्षरमात्रादि न्यूनतया रहितं सर्वप्रमाणोपेतम् एतावच्चतुष्टयविशेषणविशिष्टं केवलवरज्ञानदर्शनं समुत्पन्नम् । अथोत्पन्नकेवलः किं करोतोत्याह - तए णं' इत्यादि । 'तए णं से भरहे केवली सयमेवाभरणालंकार ओमुअइ' ततः केवलज्ञानानन्तरं खलु स भरतः केवली स्वमेव आभरणालंकार वस्त्रमाल्यरूपम् अवमुश्चति त्यजति अत्र भूषणालङ्कारस्य वस्त्रमाल्यालंकारयोरवग्रहः 'ओमुइत्ता' अवमुच्य त्यक्त्वा 'सयमेव पंचमुट्ठिभं लोअं करेइ' स्वयमेव पञ्चमुष्टिकं लोचं करोति करित्ता ।'कृत्वा उपलक्षणात् सन्निहित देवतयाऽपितं साधुलिङ्गं 'भरहे केवली सदोरय मुह पत्ति रयहरणं गोच्छगं पडिग्गहं देवसं वत्थं पडिच्छइ' भरतः केवली सदोरकमुखवस्त्रिका रजोहरणं गोच्छक पात्रं देवदृष्यं वस्त्रं गृहीत्वा साधुवेषं धृत्वा 'आयसधराओ पडिणिक्खमइ' आदर्शगृहात्मतिनिष्क्रामति निर्गच्छति स भरतः केवली 'पडिणिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य निर्गत्य 'अंते उरमझमज्झेणं निग्गच्छइ' अन्तः पुरमध्यं मध्येन निर्गच्छति प्रतिनिष्क्रामति 'णिग्गच्छित्ता' निर्गत्य 'दस सहस्सरायवरे पडिबोहिय पव्यज्जं देहि तो पच्छा तेहिं सद्धि विहारं करीय, लक्खपुव्वं संजमं पालिय' दशसहस्त्रारजवरसहस्रान प्रतिबोध्य, प्रव्रज्यां ददाति, ततःपश्चात् तैः सार्द्ध विहारं कृतवान् । 'दसहि रायवरसहस्सेहिं सद्धिं संपरिखुडे विणीयं रायहाणी मज्झं मज्झेणंसकल त्रिकालवर्ति पदाथों को ये उनको अनन्त पर्यायों सहित हस्तामलकवत् जानते हैं इसलिये इन्हें कृत्स्न कहा गया है । सूत्र की अपेक्षा ये अक्षर मात्रा आदि क न्यूनता से रहित होते हैं इसलिये इन्हें प्रतिपूर्ण कहा गया है. (तएणं से भरहे केवली सयमेवाभरणालंकार ओमुअइ) इसके बाद उस भरत केवली ने अपने आप ही अवशिष्ट माल्यादिरूप आभरणों को एवं वस्त्रादिकों को छोड़ दिया (ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोअं करेइ) छोड़कर फिर उन्होंने पंचमुष्टिक केशोंका लोंच किया (करित्ता आयंसघराओ पडिणिक्खमइ ) पंचमुष्टिक केशलोच करके सन्निहित पास में रहे हुए देव द्वारा अर्पित साधुलिङ्ग को ग्रहण करके धारण-करके वे आदर्श भवन से बाहर निकले ( पडिनिक्खमिता अंदेउरमझमझेणं णिगच्छई ) बाहर निकलकर वे अपने આવેલ છે. સકલ ત્રિકાલવતિ પદાર્થોને એઓ તેમની અનંતપર્યા સહિત હસ્તામલકત જાણે છે. એથી જ એમને કૃત્ન કહેવામાં આવે છે. સૂત્રની અપેક્ષાએ એ અક્ષર માત્રા વગે. ना न्यूनताथा रहित हाय छे. मेथी । मेमने प्रतिपूण हवामा भाव छ. (तए ण से भरहे केवली सयमेवाभरणालंकारं ओमुअइ) त्यासात भरत पक्षी से पोताना भेजे अपशिष्ट मास्या ३५ मास तम याने ५५ त्यहीघi. (ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोअं करेइ) त्यने ५छ। तेभरे ५ यमुट शयन य. (करिता आयंसघराओं पडिणिक्खमइ) पयमुष्ट शझुंथन रीने सन्नितिनिट भूसा वा२॥ અર્પિત સાધુલિંગને ગ્રહણ કરીને-ધારણ કરીને તેઓ આ દશ ભવનમાંથી બહાર નીકળી गया. (पडिणिक्खमित्ता अंतेउर मज्झं मझेण णिगच्छई ) मा२ नीजीन तेसो पोताना अपनी १२ये थने मनमाथी महा२ नीजी गया. 'दससहस्स रायवरे पडिबोहिय पज्जं देहि तओ पच्छा तेहिं सद्धि विहारं करिअ लक्खपुव्वं संजम पालिय' सार જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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