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________________ प्रकाशिका टीका सू० १४ आभियोग्यश्रेणिद्वयनिरूपणम् चक्रमयरहितानि, पुनः शिवानि-स्वचक्रभयरहितानि तथा किङ्करामरदण्डोपरक्षितानि दण्ड हस्तै भृत्यदेवैः संरक्षितानि, लायितोल्लायितमहितानि-लेपोपलेपपरिष्कृतानि, गोशीर्षसरसरक्तचन्दनदर्दरदत्तपश्चाङ्गुलितलानि-गोशीर्ष चन्दनविशेषः, सरसं-रससहितं प्रशस्तं यद् रक्तचन्दनं चेत्युभाभ्यां दर्दरं-प्रचुरं यथा स्यात्तथा दत्तानि-न्यस्तानि पञ्चांगुलितलानि येषु तानि तथा, । उपचितचन्दनकलशानि-उपचिताः-स्थापिताः चन्दनकलशा येषु तथा, चन्दनघटसुकृततोरणप्रतिद्वारदेशभागानि चन्दनघटाः चन्दनचचितकलशा, सुकृततोरणानि -सुष्टु रचिततोरणानि च प्रतिद्वारदेशभागेषु येषां तानि तथा । आसक्तोत्सत विपुलवृत्तव्याधारित माल्यदामकलापानि आसक्तः भूमौ लग्नःउत्सतः-उपरि लग्नश्च विपुलः विस्तीर्णः वृत्तः-वर्तुलः व्याधारितः-प्रलम्बितः माल्यदामकलाप:-पुष्पमाला-समूहो येषु तानि तथा, पञ्चवर्णसरससुरभिमुक्तपुष्पपुजोपचारकलितानि पश्चवर्णानां सरसानां सुरभीणां-सुगन्धीनां पुष्पाणां यः पुजा-समूहः तस्य य उपचारः यत्र तत्र स्थापनम् तेन कलितानि-युक्तानि तथा कालागुरु प्रवरकु. परचक्र का यहां भय नहीं है "शिवानि" तथा स्वचक्र के भय से ये रहित है । जिनके हाथो में दण्ड है ऐसे किंकरभूत देवों से ये संरक्षित बने हुए है । "लायितोल्लायित महितानि" गोमयादि के लेप से ये परिष्कृत है "गोशीर्ष सरसरक्तचंदनदर्दरदत्त पञ्चांगुलितलानि" गोशीर्ष चन्दन और सरस रक्त चन्दन के अधिक से अधिक मात्रा में इनमें हाथे लगे हुए है । जगह जगह इनमें चन्दन के बने हुए कलश रखे हुए है। हर एक भवन के हर एक द्वार पर चन्दन कलशों द्वारा किये गए तोरण बने हुए है “आसक्तोत्सक्त विपुलवृत्तव्याघारितमाल्यदामकलापानि" इनमें जो पुष्पमालाओं का समुह है वह ऊपर से लेकर भूमि तक लगा हुआ है-ऐसा विस्तीर्ण है, तथा-वृत्त-गोल आकार वाला है और लटकता हुआ हैं “पञ्चवर्णसरस." इन भवनो में यत्र-तत्र सरस पंचवर्णोपेत एवं सुगंधित पुष्पों का समूह विखरा हुआ रहता है "कालागुरु" जलते हुए कालागुरु की, गोवसी छ. ५२यना मी भय नथा. "शिवानि तमन स्वायना नयथा २डित छ. भना डायामा छ मेव। २भूत वोथा में सपना स२क्षित यया छ. "लायितोल्लायितमहितानि" गोमयाहिना सपना सपना पति . "गोशीर्षसरसरक्तचंदनदर्दरदत्त पञ्चांगुलितलानि” गायन्न भने सरस२५त यहनना अधिधि प्रगाढसेપાદિના એ ભવનમાં હાથના થાપાઓ લાગેલા છે. સ્થાને સ્થાન પર ચંદન નિર્મિત કલશે એ ભવનમાં મૂકેલા છે. દરેક ભવનના દરેક દ્વાર પર ચન્દન કલશે ના તેરણા બનેલા છે. "आसक्तोत्सतविपुलमत्त व्याधारितमाल्यदामकलापानि" से सपनामा रे ०५माताઓના સમૂહ છે તે ઉપરથી ભૂમિ સુધી પહોંચેલા છે–વિસ્તીર્ણ છે. તેમજ વૃત્ત-ગળ આકાર वा छे. सन सटता छ. “पञ्चवर्णसरस." से सपनामा यत्र तत्र स२६ पयपणेचत तम सुचित पोन। सभूले। Aslथयेस२ छ. "कालागुरु०' oraled el જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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