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________________ ८०४ सूर्यप्राप्तिसूत्रे सूर्याः अन्ये च्यवन्ते अन्ये उत्पद्यन्ते इति आख्याता इति वदेत् (४)। एके पुनरेवमाहुस्तावत् अनुमासमेव चन्द्रसूर्या अन्ये च्यवन्ते अन्ये उत्पद्यन्ते इत्याख्याता इति वदेत् एके एवमाहुः (५) । एके पुनरेवमाहुः तावत् अनुऋतुमेव चन्द्रसूर्याः अन्ये च्यवन्ते अन्ये उत्पधन्ते इत्याख्याता इति वदेत् एके एवमाहुः (६) । एवं तावत् अनुअयनमेव (७) । तावत् अनुसंवत्सरमेव (८) । तावत् अनुयुगमेव (९) । तावत् अनुवषेशतमेव (१०)। तावत् अनुआहिएत्ति वएज्जा एगे एवमासु) कोई एक चतुर्थमतवादी प्रतिपक्ष में चंद्र सूर्य पूर्वोत्पन्न अदृश्य होते हैं एवं नवीन उत्पन्न होते हैं, कोई एक चोथा मत वादी इस प्रकार से कहता है (४) (एगे पुण एवमासु ता अणुमासमेव चंदिम सूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति आहिएति वएजा एगे एवमासु) कोई एक इस प्रकार से कहता है की प्रत्येक मास में सूर्य चंद्र पूर्वोत्पन्न विलीन होते हैं एवं पश्चात् वर्ति उत्पन्न होते हैं, कोइ एक पांचवां मतवादी इस प्रकार कहता है (५) (एगे पुण एवमासु अणुउउमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति आहिएत्ति वएन्जा एगे एवमाहंसु) कोई एक इस प्रकार कहता है की प्रतिऋतु में चंद्र सूर्य पूर्वोत्पन्न नष्ट होते हैं एवं नवीन का प्रादूर्भाव होता है ऐसा स्वशिष्यों को कहें इस प्रकार छठा मतावलंबी का कथन है (६) (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुअयणमेव) कोई एक प्रत्येक अयन में सूर्य चंद्र पूर्वोत्पन्न का विनाश एवं नवीन का प्रादुर्भाव कहते हैं (७) (ता अणुसंवच्छरमेव) कोई अनुसंवत्सर कहता है (८) (ता अणुजुगमेव) कोई एक प्रत्येक युग कहता है (९) (ता अणुवाससयमेव) कोई एक प्रत्येक सौ वर्ष में कहता सुरिया अण्णे चयति अण्णे उववज्जति आहित्ति वएज्जा एगे एव माहंसु) से याथा મતાવલંબી હરેક પક્ષમાં ચંદ્ર સૂર્ય પૂર્વોત્પન્ન અદશ્ય થાય છે. અને નવાને જન્મ થાય छे. ध मे यतु भी 41 प्रमाणे ४९ छे. (४) (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुमास मेव चंदिमसूरिया अण्णे चयति अण्णे उववज्जंति आहिएत्ति वएज्जा एगे एवमासु) अर्थ એક એ રીતે કહે છેકેદરેક માસમાં ચંદ્ર, સૂર્ય પૂર્વોત્પન વિલીન થાય છે. અને પશ્ચાત્ पति उत्पन्न थाय छ. २४ पायो भतारमी शत ४ छे. (५) (एगे पुण एवमासु अणुउउ मेव चंदिमसूरिया अण्णे चयति अण्णे उववज्जति आहित्ति वएज्जा एगे एवमासु) मे 24 प्रमाणे डे छ. ॐ ४२४ *नुमा यद्र सूर्य पडदा उत्पन्न થયેલા નષ્ટ થાય છે. અને નવા પ્રાદુર્ભાવ થાય છે. એ પ્રમાણે શિષ્યોને કહેવું આ प्रमाणे छ। मताभीनु थन छे. (एगे पुण एवमासु ता अणुअयणमेव) असे प्रत्ये: अयनमा सूर्य में पूर्वोत्य-ननो विनाश भने नपान। प्रादुर्भाव ४९ छे. (७) (ता अणुसंवच्छर मेव) मे १२४ सवत्स२मा ४ छ. (८) (ता अणुजुग मेव) मे १२४ युगमा ४ छ. (८) (ता अणुवाससय मेव) 315 - ४२४ सो वष मा ४ छ, (१०) શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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