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________________ ७४८ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे शेष स्थानं च 'ता जया णं चंद' मित्यादिना प्रतिपादयति ॥ टीका-'ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं सूरे गतिसमावण्णे भवइ' तावत् यदा खलु चन्द्रं गतिसमापन्नं सूर्यों गतिसमापनो भवति ॥ तावदिति पूर्ववत णमिति वाक्यालारे यदा-यस्मिन् समये चन्द्रं गतिसमापन्नं-गतिपूर्णतामपेक्ष्य सूर्यो गतिसमापनो विवक्षितो भवति-चन्द्रगतिसापेक्षा सूर्यगतिरपेक्षास्यादर्थात् प्रतिमुहर्त चन्द्रगतिमपेक्ष्य सूर्यगतिश्चिन्त्यते चेत् तदा 'से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ?' स खलु गतिमात्रया कियतो विशेषयति ॥ तस्मिन् समये स खलु सूर्यों गतिमात्रया एकमुहूर्तगत्या-एकमुहूर्तगतगतिपरिमाणेन कियतो भागान् विशेषयति,-अधिको भवति ?-एकेन मुहुर्तेन चन्द्राक्रमितेभ्यो भागेभ्यः कियतोऽधिकान् भागान् आक्रमति सूर्य इति भावः ॥ एवं गौतमस्य प्रश्नानन्तरं भगवानाह-'बावट्ठिभागे विसेसेइ' द्वाषष्टिभागान् विशेषयति ॥ केवलं द्वापष्टिभागान् पूर्व प्रतिपादित स्वरूपात्मक चंद्र मूर्य एवं नक्षत्रों के मंडल भाग विषय में विशेष कथन करते हैं-(ता जया णं चंदं गइ समावणं) इत्यादि। टीकार्थ-चंद्र-सूर्य-एवं नक्षत्रों का परस्पर का मंडल भाग का भोगकाल को कह कर उसकी पूर्णता का सविशेष स्थान का प्रतिपादन करते हैं-(ता जया णं चंदं गतिसमावणं सूरेण गतिसमावण्णे भवइ) जिस समय चंद्र को गति पूर्णता वाला देख कर सूर्यगति समापन्नक विवक्षित होता है । अर्थात् चंद्रगति सापेक्ष सूर्यगति की अपेक्षा होती है कहने का भाव यह है कि-प्रतिमुहूर्त चंद्रगति की अपेक्षा करके सूर्यगति का विचार करे तो (से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति) उस समय वह सूर्य एक मुहूर्त गतगति परिमाण से कितने भागों को विशेषित करते हैं ? अर्थात् एक मुहूर्त में चंद्र से आक्रमित भागों से कितने अधिक भागों को सूर्य आक्रमित करते हैं। इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान कहते हैं-(बावहि પહેલાં પ્રતિપાદન કરેલ સ્વરૂપાત્મક ચંદ્ર, સૂર્ય અને નક્ષત્રોના મંડળ ભાગ વિષયમાં विशेष ४थन वामां आवे छे. (ता जया णं चदं गइ समावण्णं) ईत्यादि. ટીકાર્થ–ચંદ્ર, સૂર્ય, અને નક્ષત્રના પરસ્પરના મંડળ ભાગના ભેગકાળને કહીને तेनी पूर्ण ताना सविशेषस्थाननु प्रतिपाहन ४२वामां आवे छे. (ता जया णं चंद गतिसमावण्णं सूरे गतिसमावण्णे भवइ) रे समये यदने गतिपूतावान ने सूर्य गतिसमापन વિવક્ષિત થાય છે, અર્થાત્ ચંદ્રગતિ સાપેક્ષ સૂર્યગતિની અપેક્ષા રહે છે. કહેવાને ભાવ એ છે કે–પ્રત્યેક મુહૂર્તમાં ચંદ્રની ગતિની અપેક્ષા કરીને સૂર્યની ગતિને વિચાર કરવામાં आवे तो (से णं गतिमानाए केवतियं विसेसेति) ते समय से सूर्य ना ४ मुहूत गति પરિમાણથી કેટલા ભાગે વિશેષિત કરવામાં આવે છે ? અર્થાત્ એક મુહૂર્તમાં ચંદ્રથી આ આ કમિત ભાગથી કેટલા વધારે ભાગોને સૂર્ય આકમિત કરે છે? આ પ્રમાણેના શ્રીગૌતમ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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