SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे चैव, हस्तस्य यथा चन्द्रस्य ।।-तावत्-तदानींतने समये यस्मिन् समये यथोक्तशेषेण हस्तनक्षत्रेण सह युक्तश्चन्द्रस्तृतीयाममावास्यां परिसमापयति तस्मिन् क्षणे सूर्योऽपि हस्तनक्षत्रे गैव युक्तः सन् तृतीयाममावास्यां परिपूरयति, हस्तनक्षत्रस्य च यथोक्तशेषविभागेऽपि यथा चन्द्रस्य प्रतिपादितस्तथैव सूर्यस्यापि ज्ञेयः, एतच्चोभयोरपि करणस्य समानार्थत्वात् सर्वसमानमेवावसेयम् । इत्थमेवमुत्तरसूत्रयोरपि द्रष्टव्यम् , शेपपाठविषयेऽतिदेशमाह-'हत्थस्स णं जहा चंदस्स' यथा चन्द्रस्य हस्तनक्षत्रविषये शेषः प्रतिपादितस्तथैव सूर्यस्य विषयेऽपि वक्तव्यः, स चैवम्-'हत्थस्स चत्तारि भुहुत्ता तीसं चेव बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स, बावट्ठिभागं च सत्तट्टिहा छेत्ता चउसद्धिं चुण्णियाभागा सेसा' हस्तस्य चत्वारो मुहर्ताः, एकस्य च मुहूतस्य त्रिंशद् द्वापष्टिभागाः, एकं च द्वापष्टिमागं सप्तपष्टिधा छित्वा-सप्तपष्टिविभागै विभज्य कौनसे नक्षत्र के साथ युक्त होता है ? इस प्रकार गौतमस्वामी का प्रश्न सुनकर उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-(ता हत्थेणं) उस समय सूर्य भी इसी हस्त नक्षत्र से युक्त होकर तीसरी अमावास्या को समाप्त करता है। इसी नक्षत्र का यथोक्त शेष विभाग में भी जिस प्रकार चंद्र विषयक प्रतिपादन किया है, उसी प्रकार सूर्य का भी शेष विभाग समझलेवें । कारण की ये दोनों के करण समानार्थक ही होता है अतः सभी समान ही जानलेवें । इसी प्रकार आगे के दो सूत्र में भी कहलेवें । अवशिष्ट पाठ विषय में अतिदेश से कहते हैं-(हत्थस्स णं जहा चंदस्स) जिस प्रकार चंद्र का हस्तनक्षत्र के संबंध में शेष प्रतिपादित किया है, उसी प्रकार सूर्य के विषय में प्रतिपादित करलेवें, वह इसप्रकार से हैं-(हत्थस्स चत्तारि मुहुत्ता तीसं चेव बावटिभागा मुहुत्तस्स बावहिभागं च सत्तट्टिहा छेत्ता चउसद्धिं चुणियाभागा सेसा) हस्त नक्षत्र का चार मुहूर्त, तथा एक मुहूर्त का बासठिया तीस भाग तथा बासठिया एक भाग का सडसठ भाग करके उनमें से चौसठ चूर्णिका भाग शेष जहां पर हो गौतमत्वाभाना प्रश्नने समजाने उत्तरमा प्रभुश्री (ता हत्थेणं चेय) से समये સૂર્ય પણ હસ્ત નક્ષત્રથી યુક્ત થઈને ત્રીજી અમાવાસ્યાને સમાપ્ત કરે છે. હસ્ત નક્ષત્રના યત શેષ વિભાગમાં પણ જે રીતે ચંદ્રના સંબંધમાં પ્રતિપાદન કરેલ છે. એજ પ્રમાણે સૂર્યને શેષ વિભાગ પણ સમજી લે, કારણ કે બેઉને કરણ એક સરખાજ હોય છે. તેથી સઘળું કથન સરખું જ સમજવું. આજ પ્રમાણે અાગળના બે સૂત્રમાં પણ ही सेवु. ४ीन पाना सधमा मतिशथी ४ छ-(हस्थासणं जहा चंदस्स) २ प्रमाणे ચંદ્રનું હસ્ત નક્ષત્ર સંબંધી શેષ કથન પ્રતિપાદિત કરેલ છે. એ જ પ્રમાણે સૂર્યના विषयमा ५ प्रतिपाहित ४२ से. ते मा प्रमाणे छ-(हत्थस्स चत्तारि मुहुत्ता तीसंचेव बासद्वि भागा मुहुत्तस्स बापट्टि भागं च सत्तद्विहा छेत्ता चउसद्धि चुणिया भागा सेसा) स्त નક્ષત્રના ચાર મુહૂર્ત તથા એક મુહૂર્તના બાસાિ ત્રીસ ભાગ તથા બાસડિયા એક શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy