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________________ १०९० सूर्यप्रज्ञप्तिस महाग्रहाः - मुख्यग्रहाः - चर्मचक्षुषां उपलभ्यमानाः - ग्रहाः - गमनशीलास्तेजस्विनः पदार्था:प्रकाशविम्बाः - प्रज्ञप्ताः सन्ति । तद्यथा नामक्रमेण ज्ञेयाः । अङ्गारको विकालको लोहित्यकः शनैश्वराद्याः अष्टाशीति संख्यकाः सन्ति । किमत्र पुनर्नामोहंक नेक ! | ( कणगसनामावि) - कनकेन सह एकदेशेन समानं नाम येषां ते कनकसमान नामानस्ते पञ्चैव पूर्वोक्तक्रमेणबोद्धव्यास्तद्यथा - कणः कणकः कणकणकः कणवितानकः कणसन्तानक इति पञ्च कनकसमाननामानः । एवं च त्रयः कंसनामानस्तद्यथा - कंसः कंसनाभः कंसवर्णाभः इति । (नीले रूपी य हवंति चत्तारि) अत्र नीले रूप्पे च शब्दे विषयभूते । द्विद्विनाम सम्भवात् सर्वसंख्याश्चत्वारो भवन्ति, तद्यथा - नीलः नीलावभासः इति द्वे, तथा रूपी रूप्यवभासचेति द्वे, सर्वसंख्या चत्वार इति । ततो भासेति नामद्वयोपलक्षणं तद्यथा - भस्म भस्मराशिचेति । अथैतेषामेव नाम्नां सुखप्रतिपत्यर्थ सङ्ग्रहणि गाथानवकमाह यथा'इंगालए वियालए लोहियंके शणिच्छरे चैव । आणिए पाहुणिए कणगसनामावि पंचैव ॥ १ ॥ (८५) पुष्प (८६) भाव (८७) केतु (८८) इस प्रकार अठासी संख्या कही हैं ( कणगसनामानि ) कनक के समान एक देश से नामवाले पूर्वोक्त क्रम से पांच ग्रह समझ लेवें, जो इस प्रकार है-कण, कणक, कणकणक, कण वितानक एवं कण संतानक ए पांच कनक समान नामवाले कहे हैं, इसी प्रकार तीन कंस नामवाले कहे हैं जो इस प्रकार से हैं-कंस, कंसनाभ, कंसवर्णाभ (नीले रुप्पीय हवंति चत्तारि) नील एवं रुप्पी का दो दो प्रकार का नाम की संभावना होने से चार नाम होते हैं जो इस प्रकार से हैं-नील एवं नीलावभास ये दो तथा रूप्पी एवं रुप्यवभास ये दो मिलकर चार हो जाते हैं । तत्पश्चात् भास यह नाम भी दो प्रकार का है जैसे की भस्म एवं भस्म राशि अब उसी नामों का सुखावबोद्ध के लिये यहां पर संग्रहणी गाथाएं कही गई है जो इस प्रकार से है - ( इंगालए वियालए) इत्यादि प्रकार से नव गाथाएं पुण्य (८६) भाव (८७) हेतु (८८) या प्रमाणे सध्याशी सौंण्यात्मा नामी उद्या छे. ( कणगसनामानि ) उननी नेवा येऊ हेराथी नाभत्राणा यूर्वोस्त थी पांथ थड़े। समनवा જે આ પ્રમાણે છે. ઋણુ, ઋણુક, કણકણુક, કવિતાનક અને સંતાનક આ પાંચ કનક સમાન નામવાળા કહ્યા છે એજ પ્રમાણે ત્રણ કંસ જેવા નામે કહ્યા છે. જે આ પ્રમાણે एस, सनाल, सर्याल (नीले रूप्पीय हवंति चत्तारि ) नीस भने उपीना मम्मे प्रारना નામાની સંભાવના હાવાથી ચાર નામે થાય છે જે આ પ્રમાણે છે–નીલ અને નીલાવભાસ આ છે તથા રૂપ્પી અને રૂપ્પાવભાસ આ બે મળીને ચાર થઈ જાય છે, તે પછી ભાસ એ નામ પણ એ પ્રકારનુ` છે. જેમ કે ભસ્મ અને ભસ્મરાશિ હવે આજ નામેાના सुभावोध भाटे महीं संग्रहणी गाथाओ उडी छे, ? या प्रमाणे छे- ( इंगालए वियालए) શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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