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________________ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे प्लवमाना वस्तुनो दूरतः परिपतन्ति, ततः प्रकाश्यस्य वस्तुनो महती महत्तरा छाया उपपद्यमाना भवति, उच्चैरुच्चैस्तरां वर्तमाने सूर्य प्रत्यासन्नाः प्रत्यासन्नतराः परिपतन्ति, ततः प्रकाश्यस्य वस्तुतो हीना हीनतरा छाया भवति, ततस्तत एवमेव तथा तथा वर्तमानं सूर्यस्योच्चत्वं लेश्यां च प्रतीत्य छायाया अन्यथा भवन्त्या उदेशो ज्ञातव्यः, इह हि प्रतिक्षणं विलक्षणवेगेन तत् तत् पुद्गलोपचयेन तत्तत् पुद्गलहान्या वा यत् छायाया अन्यत्व मुपलभ्यते तत् केवल्येव जानाति, छद्मस्थस्तूद्देशतो भवति, उक्तञ्च छायोदेश इति, 'उच्चत्त च छायां च पडुच्च लेस्सोदेस" इति । तथा तथा विवर्त्तमानं सूर्यस्योच्चत्वं छायां च हीनां हीनतराम अधिकामधिकतरां च तथा तथा भवन्तीं प्रतीत्य-आश्रित्य लेश्यायाः प्रकाश्यस्य वस्तुनः प्रत्यासन्न प्रत्यासनतर वा दूर दूरतरं ना परिपतन्त्या परिपतन्त्या उद्देशो ज्ञातव्यः, वर्तमान होने पर सर्व प्रकश्यमान वस्तु के ऊपर तैरने के समान वस्तु दूर से प्रतित होती है। तत्पश्चात् प्रकाश्य वस्तु की महती एवं महत्तर छाया उत्पन्न होती है । सूर्य ऊंचे उच्चस्तर स्थान में वर्तमान होने पर नजदीक नजदीक लेश्या होती है। अतः प्रकाश्य वस्तु की हीन एवं हीनतर छाया होती है। अतः इस प्रकार वर्तमान सूर्य का उच्चत्व एवं लेश्या को जान कर के छाया अन्य प्रकार की होती हुई जानी जाती है। यहां पर प्रतिक्षण विलक्षण प्रकार के वेग से उस उस पुद्गलों कि वृद्धि से अथवा उस उस पुद्गल की हानी से, छाया का जो अन्यत्व माने भिन्न प्रकार दिखता है, वह केवली ही जान सकते हैं। छद्मस्थ उद्देश मात्र ही है। अतः (छायोद्देश) ऐसा कहा है (उच्चत्तं च छायां च पडुच्च लेस्सोद्देस) इति उस उस प्रकार से सूर्य का उच्चत्व तथा हीन हीनतर अथवा अधिक अधिकतर उस उस प्रकार की होती हुई देखकर तथा लेश्या का प्रकाश्य वस्तु के प्रत्यासन्न माने समीप या समीपतर तथा दूर या दूरतर परिपतित परिपतित होती हुई देखी जाती है ऐसा छायोद्देश समजें। ઉપર તરતા હોય તેમ વસ્તુ દૂરથી જણાઈ આવે છે, તે પછી પ્રકાશ્ય વસ્તુની મોટી અને મહત્તર છાયા ઉત્પન્ન થાય છે. સૂર્ય ઉંચે એકદમ ઉંચા સ્થાનમાં આવે ત્યારે લેશ્યા નજીક નજીક થાય છે, તેથી પ્રકાશ્યવસ્તુની હીન અને હીનતર છાયા થાય છે, આ રીતે વર્તમાન સૂર્યનું ઉચ્ચત્વ અને લેશ્યાને જાણીને છાયા અન્ય પ્રકારની થતી જણાય છે, અહીંયાં પ્રતિક્ષણે વિલક્ષણ પ્રકારના વેગથી તે તે પુદ્ગલેના વધવાથી અથવા તે તે પુદ્ગલેની હાની થવાથી છાયાનું જે અન્યત્વ અર્થાત્ ભિન્ન પ્રકાર દેખાય છે, તે કેવળ ज्ञानी onjी २ तेभ छे. छAथ तो निमित्त मात्र छे. तेथी (छायोदेश) से प्रमाण हेस छे. (उच्चत्तं च छायं च पडुच्च छायोदेसे) ति ते ते माथी सूर्य नुस्यत्व तथा હીન હીનતર અથવા અધિક અધિકાર છે તે પ્રકારે થતી જોઈને તથા લેયાને પ્રકાશ્ય વસ્તુની પ્રત્યાસન અર્થાત્ નજીક અથવા સમીપર તથા દર અથવા દૂરતર પરિપતિત શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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