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________________ ५४६ ___ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र स्वीकरोति, 'वर इप्सायं' इत्यनेन स्वप्रकाशकत्वेन स्वीकुर्वन्-आप्तुमिच्छन् आख्यात इति वदेत्-बोधय भगवन् ! प्रणतं मामित्येव मुक्ते गौतमे भगवान् महावीरस्वामी प्रथममेतद् विषया यावत्यः परतीथिकानां प्रतिपत्तयः सन्ति तावतीः कथयति, 'तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ' तत्र खलु इमाः विंशतिः प्रतिपत्तयः प्रज्ञप्ताः ॥-तत्र-सूर्य प्रतिवरणविषये खलु इति निश्चितमिमा:-वक्ष्यमाणप्रकाराः विंशतिः-विंशतिसंख्यकाः प्रतिपत्तयः-परमतरूपाः प्रज्ञप्ताः-कथिताः सन्ति, तद्यथा प्रथमस्य मतम्-'तत्थ एगे एचमासु-ता मंदरेणं पव्वए सूरिय वरंति आहिए त्ति वएज्जा एगे एवमासु १' तत्र एके एवमाहु-स्तावन्मन्दरः खलु पर्वतः सूर्य वरयति आख्यात इति वदेत्, एके एवमाहुः ॥-तत्र तेषां विंशते: परतीथिकानां मध्ये एके-प्रथमास्तीर्थान्तरीयाः एवम्-अनन्तरोच्यमानप्रकारकं स्वमतमाहुः-कथयन्ति, तद्यथा-मन्दरः खलु पर्वतः सूर्य वरयति-स्वप्रकाशकत्वेन स्वीवाले सूर्य हैं इस प्रकार स्वीकार करता है ? (वर इप्सायं) आप को प्रकाशित पने से स्वीकार करते हैं ? सो हे भगवन् प्रणाम करते हुवे मुझे कहिये इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न करने पर उसके उत्तर में भगवान महावीरस्वामी पहले इस विषय को प्रकाशित करने वाली परतीर्थिकों की जो प्रतिपत्तियां हैं वे कहते हैं-(तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ) इस विषय में ये वीस प्रतिपत्तियां कही गई है अर्थात सूर्य के वरण विषय में ये वक्ष्यमाण प्रकार वाली वीस संख्यात्मक परमत की मान्यता रूप प्रतिपत्तियां कहो गई है। उनमें प्रथम प्रतिपत्ति इस प्रकार से हैं-(तत्थ एगे एवमाहंसु-ता मंदरे पव्वए सूरियं वरंति आहियत्ति वएन्जा एगे एवमासु) १ उन वीस परतीथिकों में कोइ एक माने पहला परतीथिक यह आगे कथ्यमान प्रकार का अपना मत प्रगट करता है जो इस प्रकार है वह कहता है कि मंदर पर्वत सूर्य का वरण करता है माने अपना प्रकाशक पने से स्वीकार करता है। कारण વ્યક્તિ વિશેષ સૂર્યનું વરણ કરે છે? અર્થાત્ સૂર્યની લેગ્યાથી સંસ્કૃષ્ટ થાય છે? એટલે पाताने प्रोशित ४२वापणा छ । प्रमाणे स्वी२ छ १ (वर इप्सायं) अर्थात् पाताने प्रा. શિત કરનાર તરીકે સ્વીકારે છે? તે હે ભગવાન મને કહે આ પ્રમાણે શ્રી ગૌતમસ્વામીએ પ્રશ્ન પૂછવાથી તેના ઉત્તરમાં ભગવાન મહાવીરસ્વામી આ વિષયમાં પહેલાં અન્યતીથિની भान्यता ३५ प्रतिपत्तियानु४थन ४२ छ.-(तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ) આ વિષયમાં આ વક્ષ્યમાણ પ્રકારની વીસ અન્ય મતાવલમ્બીયાની માન્યતા રૂપ પ્રતિપત્તી हेपाभा यावेत छ. तेमा पली प्रतिपत्तिवाहीनो मत २॥ प्रमाणे छे.-(तत्थ एगे एवमाहंसु ता मंदरेणं पव्वए सूरियं वरंति आहियत्ति वएज्जा, एगे एवमासु) १ मे वीस ५२तीथि अमi કેઈ એક એટલે કે–પહેલે પરતીર્થિક આ હવે પછી કહેવામાં આવનાર પ્રકારથી પિતાને મત પ્રદર્શિત કરે છે જે આ પ્રમાણે છે, તે કહે છે કે–મંદર પર્વત સૂર્યનું વરણ-સ્વીકાર શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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