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________________ सूर्यक्षप्तिप्रकाशिका टीका सू० २७ षष्ठं प्राभृतम् ओजः-प्रकाशोऽन्यदुपपद्यते-उत्पद्यते अन्यच्चापैति-विनश्यति, प्रतियुगमेव सूर्यस्य प्रकाशे भिन्नत्वमुत्पद्यते नतु तत्पूर्वमिति नवमस्य प्रजल्पनमिति एके एवमाहुरित्युपसंहरति । 'एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुवाससयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पजइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु १०' एके पुनरेवमाहु स्तावत् अनुवर्षशतमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति एके एवमाहुः १० ॥ तावदिति पूर्ववत् एके पुनर्देशमाः कथयन्ति यत् अनुवर्षशतमेव-प्रतिशतवर्षमेव सूर्यस्यौजः-प्रकाशोऽन्यदुपपद्यते-उत्पद्यते, अन्यच्चापैति-विनश्यति, प्रतिशतवर्षमेव प्रकाशे भिन्नत्व मुत्पद्यत इति दशमस्य प्रजल्पनमिति एके एवमारित्युपसंहरति । 'एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुवाससहस्समेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पजइ अण्णा अवेइ, एगे इस प्रकार अपना मत प्रदर्शित करता है ॥९॥ अर्थात् नवां का प्रजल्पन है कि प्रतियुग में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है माने प्रतियुग में सूर्यके प्रकाश में भिन्नत्व उत्पन्न होता है उसके पहले नहीं कोई एक इस प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता है ॥९॥ (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुवाससयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमासु ॥१०॥ कोई एक इस प्रकार से कहता है कि प्रतिसोवर्ष में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य ही विनष्ट होता है कोइ एक इस प्रकार कहता है ॥१०॥ अर्थात् कोई दसवां तीर्थान्तरीय कहता है कि प्रति सो वर्ष में सूर्यका प्रकाश अन्य ही उत्पन्न होता है एवं अन्य ही विनष्ट होता है माने प्रति सो वर्ष में प्रकाश में भिन्नता दिखती है इस प्रकार दसवें मतावलम्बी का प्रजल्पन है कोई एक इसप्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता है ॥१०॥ (एगे पुण एवमासु ता अणुवाससहस्समेव मूरियस्स ओया अण्णा સૂર્યનું ઓજસ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય વિનાશ પામે છે. કોઈ એક એવી રીતે પિતાનો મત દર્શાવે છે, ૯ અથવા નવમે અન્ય મતાવલી એવું પ્રજલ્પન કરે છે કે–દરેક યુગમાં સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન થાય છે અને અન્ય નાશ પામે છે, એટલે કે દરેક યુગમાં સૂર્યના પ્રકાશમાં જુદાપણું ઉત્પન્ન થાય છે તેની પહેલાં નહીં એ प्रमाणे ये पोतानो मत प्रशित ४३ छ. । (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुवाससयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णाअवेइ एगे एवमाहंसु) १० मे मेवा शत કહે છે કે દરેક સે વર્ષે સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે. અને અન્ય વિનાશ પામે છે, કોઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે, અર્થાત્ કોઈ દસમે અન્ય મતવાદી કહે છે કેદરેક સે વર્ષમાં સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય જ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય નાશ પામે છે. એટલે કે દરેક સે વર્ષે પ્રકાશમાં જુદાઈ દેખાય છે. આ પ્રમાણે દસમા મતાવલીનું ४६५न छ, ४ मावी शत पातानी मत प्रशित ४२ छ. १०। (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुवाससहस्समेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ, एगे શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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