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________________ २८२ प्रज्ञापनासूत्रे अजघन्यानुत्कृष्टेन द्वौ सपशे, साम्परा यि सबन्ध प्रतीत्य जघन्येन द्वादशमुहूर्तानि, उत्कृष्टेन पञ्चदश सागरोपमकोटी कोटया, पञ्चदशवर्षगहस्राणि अबाधा, अनाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, असातावेदनीयस्य जघन्धेन सागरोषमस्य त्रयः सप्तभागाः पल्योगमस्य अरुपेय. भागोनाः, उत्कृष्टेन त्रिंशत्यारोपमकोटीकोटया, त्रीणिच वर्ष पहखाणि अवावा, सम्यक्त्वपेदनीयस्य पृच्छा, गौतम ! जयन्येन अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कृष्टेन पट्पष्टिः सागरोपमाणि सातिमुहर्त की, उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की (तिणि य वास सहस्साई अवाहा) अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का __(सायावेयणिजस्स इरियावहियं बंधगं पडुच अजहण्णमणुकोसेणं दो समया) साता वेदनीय कर्म की ईप थक बंधक की अपेक्षा जघन्य - उत्कृष्ट भेद रहित दो समय की (संपराइयं बंधगं पडुच्च जहणेणं बारस मुहुत्ता) साम्परायिक बंधक की अपेक्षा जघन्य बारह मुहूर्त (उक्कोसेणं पण्णरससागरोपम कोडाकोडी भो) उत्कृष्ट पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की (पण्णरस वाससयाई अबाहा) पन्द्रह सौ वर्ष का अाधा काल । (असायावेणिजस्स जहण्णणं सागरोवमस्स तिषिण सत्त भागा पलिओ वमस्स असंखेजई भागेणं ऊणया) असाता वेदनोय कर्म की जघन्य स्थिति सागरोपम के सात भागों में से तीन भाग की अर्थात : भाग की, मगर उसमें से पल्योपम का :असंख्यातवां भाग कम (उक्कोसेणं तीसं सागरोवम कोडा कोडोओ) उत्कृष्ट तीस कोडाकोडो सागरोपम की (तिषिण य वाससहस्साई अवाहा) तीन हजार वर्ष का अवाधा काल है। (सम्मत्तयणिजस्स पुच्छा?) सम्यक्त्व वेदनीय विषयक प्रश्न ? (गोयमा! शेपमनी ( तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा) २५माया ॥२ पाना हाय छ । ___(सायावेयणिज्जस्स इरियाबहियं बंधगं पडुच अजहण्णमणुक्कोसेणं दो समया) साता વેદનીય કર્મની ઈર્યા પથિક બંધકની અપેક્ષાએ જઘન્ય ઉત્કૃeભેદ રહિત બે સમયની (संपरोइयं बंधगं पडुच्च जहण्णेणं बारसमुहुत्ता) सां५२१ मधानी अपेक्षाय धन्य मार भुडूत (उक्कोसेणं पण्णरससागरोपमकोडाकोडीओ) Gष्ट ५४ाडी सागरी५मनी (पण्णरसवाससयाई अबाहा) ५४२से। वनो माया (आसायावेयणिज्जस्स जहण्णेणं सागरोवमस्स तिण्णिसत्तभागा पलिओवमस्स अस खेज्जइभागेणं ऊणया) मसाला वहनीय भनी धन्य स्थिति सागरी५मना सात Anti ऋण सासनी अर्थात् भागनी, छ. ५ तेमाथा ५८।५मना मन्यात मा न्यून (उक्कोसेणं तीस सागरोत्रमकोडाकोडीओ) कृष्ट त्रीस ो। सागरे। ५३५नी (तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा) त्राए २ वषना अमाया छे. (सम्मत्तवेगणिज्जस्स पुच्छा ?) सभ्यत्व वहनीय विषय प्रश्न ? (गोयमा ! अंतोमुहुत्तं) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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