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________________ ૨૦૪૪ प्रशापनासूत्रे तिरिक्खजोणिया, मणुस्सा जहा जीवा, णवरं माणसमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा ॥ सू० १०॥ ____ छाया-एतेषां खलु भदन्त ! जीवानां क्रोधसमुद्घातेन मानसमुद्घातेन मायासमुद्घातेन लोभसमुद्घातेन च समयहतानाम् अकषायसमुद्घातेन समवहतानाम् असमयहतानाश्च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा बहुका वा तुल्या या विशेषाधिका या ? गौतम ! सर्वस्तोका जीवा अकषायसमुद्घातेन समरहताः, मानसमुद्घातेन समवहता अनन्तगुणाः, क्रोधसमुद्घातेन समवहता विशेषाधिकाः, मायासमुद्घातेन समवहता विशेषाधिकाः, लोभम मुद्घातेन समवहता विशेषाधिकाः, असमरहताः संख्येयगुणाः, एतेषां खलु भदन्त ! नैरयिकाणां क्रोध क्रोधसमुदघातादि-अल्प बहुत्व शब्दार्थ-(एएसि गं भंते जीवागं कोहसमुग्घाएणं माणसमुग्घाएणं माया समुग्घाएणं लोभसमुग्घाएणं समोहयाणं) हे भगवन् ! क्रोधसमुदघात से, मानसमुदघात से, मायासमुदघात से, लोभसमुद्घात से समवहत इन जीवों के (अकसायसमुग्घाएणं समोहयाणं) अकषायसमुदघात से समबहत (असमोह याण य) और असमहत में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा या बहुया या तुल्ला वा वितेताहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा ! सव्यत्थोबा जीवा) हे गौतम ! सब से कम जीव (अकसाय समुग्घाएणं समोहया) अकषायसमुद्घात से समवहत हैं (माणसमुग्घाएणं समोहया अणंतगुणा) मानसमुदूघात से समवहत अनन्तगुणा हैं (कोहसमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया) क्रोधसमुद्घात से समयहत विशेषाधिक हैं (मायासमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया) मायासमुद्घात से समवहत विशेषाधिक ક્રોધસમુદ્દઘાતાદિ–અ૫ બહત્વ शहाथ :-(एएसि ण भंते ! जीवाण कोहसमुग्घाएणं माणसमुग्घारण मायासमुग्धारण लोहसमुग्धारण समोहयाण) भगवन् ! धसमुद्धातथी, भानसभुधातथी, भायासभुधातथी. सालसमुद्धातथी समपत या याना (अकसायस मुग्धारण समोयाणं) सपायस धातथी समपत (असमोहयण य) मने असभपडतमा (यरे कयरेहितो) आए अनाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) भ६५, ५४ा, तुल्य अथवा વિશેષાધિક છે ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा) गौतम ! माथी मछ। 04 (अकसायसमुग्घाएण समोहया) म४ायस यातयी सापडत छे (माण कसायसमुग्घाएण समोहया अणंतगुणा) भानपाय ५भुधातथा सम५७त मनन्त के (कोहसमुग्धारण समोहया विसे साहिया) ओयसभुधातकी सभपत विशेषाधि छे. (मायासमुग्धारण समोहया विसेसाहिया) माया सभुधातथा सभपत विशेषाधि छे (लोहसमुग्घाएण समोया विसेसाहिया) मिसमुह શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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