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________________ ७८० प्रधापनासूत्रे अनुत्तरौपपातिकस्यापि एवञ्चैय, कार्मणशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! पञ्चविध प्रज्ञप्तम, तद्यथा-एकेन्द्रियकार्मणशरीरं यावत् पञ्चेन्द्रियकार्मणशरीरम, एवं यथैव तैजसशरीरस्य भेदः संस्थानमवगाहना च भणिता तथैव निरवशेष भणितव्यम्, यावद् अनुतरौपपातिक इति ॥ सू. ९॥ टीका-पूर्व तैजसशरीरस्य भेद संस्थानानि प्ररूपितानि सम्प्रति तस्यैव शरीरावगाहनामानं प्ररूपयितुमाह-'जीवस्स णं भंते ! मारणंतियसग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पणत्ता ?' हे भदन्त ! जीवस्य खलु सामान्यस्य मारणान्तिकसमुद्घातेना वक्ष्यमाणस्वरूपेण समवहतस्य-समवघातं कृतवतः, तै नसशरीरस्य किं महालया-कियद् विस्तारा शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-गोयमा !' हे गौतम ! 'सरीरप्पमाणमेत्ता (कम्मगसरीरे णं भते ! कइविहे पण्णत्त ?) हे भगवन् ! कार्मणशरीर कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम! पांच प्रकार का कहा है (तं जहा-एगिदिय कम्मगसरीरे जाव पंचिदियकम्मगसरीरे) वह इस प्रकारएकेन्द्रियकार्मणशरीर यावत् पंचेन्द्रियकार्मणशरीर (एवं जहेव तेय गसरीरस्त भेदो संठाणं ओगाहणा य भणिया) इस प्रकार जैसे तैजसशरीर के भेद, संस्थान और अवगाहना का कथन किया है (तहेव निरवसेसं भाणियव्यं) इसी प्रकार सब कहना चाहिए (जाव अणुत्तरोववाइयत्ति) यावत् अनुत्तरोपपातिक ॥सू० ९॥ टीकार्थ-इससे पूर्व तैजसशरीर के भेदों और संस्थान का निरूपण किया गया है, अब तैजसशरीर की अवगाहना की प्ररूपणा की जाती है श्रीगौतमस्वामी-हे भगवन् ! सामान्य जीव जब मारणान्तिक समुदघात से समवहन होता है, अर्थात मारणान्तिक समुदघात किया हुआ होता है, तब उसके तैजसशरीर की अवगाहना कितनी होती है ? (कम्मगसरीरेणं भंते ! कहीहे पण्णत्ते ?) मावन् ! म शरीर मा ५२नां घi छ ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) गौतम ! पांय ना i छ (तं जहा-एगिदिय कम्मगसरीरे जाव पाचदिय कम्मगसरीरे) ते रे अन्द्रिय ४म शरीर यावतू पये न्द्रिय शरी२ (एवं जहेव तेयगसरीरस्स भेदो संठीणओगाहणा य भणिया) से प्रारे २१ तसशरीरना लेह, संस्थान ने अपमानानु ४थन यु छ (तहेव निरवसेसं भाणियव्व) ४ २ मधु नये. (जाव अणुत्तरोववाइयत्ति) यावत् अनुत्तरी५५ति ટીકાથ-આના પૂર્વ તૈજસશરીરના ભેદે અને સંસ્થાનનું નિરૂપણ કરાયું છે, હવે તેજસશરીરની અવગાહનાની પ્રરૂપણ કરાય છે શ્રીગૌતમસ્વામી-હે ભગવન ! સામાન્ય જીવ જયારે મારણબ્લિક સમુદ્દઘાતથી સમવહત થાય છે. અર્થાત્ મારણબ્લિક સમુદુવાત કરે છે, ત્યારે તેના તૈજસ શરીરની અવગાહના કેવડી મોટી હોય છે? श्री. प्रायन सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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