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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ सू० २ औदारिकशरीरसंस्थाननिरूपणम् ६३ विधसंस्थानसंस्थितानि अवसेयानि, 'एवं थलयराणधि णवमुत्तराणि' एवम्-जलचरो. तरीत्या स्थलचराणामपि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानामौदारिकशरीरविषये नव सूत्राणिसमुच्चयस्थलचराणां तत्पर्याप्तानामपर्याप्तानाश्च त्रयाणाम् ३ एवं सम्मूच्छिम स्थल. चराणां तत्पर्याप्तानामपर्याप्तानाञ्च त्रयाणाम् ६ एवं गर्भव्युत्क्रान्तिक स्थलचराणां तत्पप्तिानामपर्याप्तानाश्च त्रयाणामित्येवं नवस्त्राणि ९ अवसेयानि, 'एवं चउप्पय थलयराण वि' एवम्-समुच्चयस्थलचरोक्तरीत्या चतुष्पदस्थलचराणामपि औदारिकशरीस्य नव सूत्राणिसमुच्चयचतुष्पदस्थल चरतत्पर्याप्तापर्याप्तानां त्रयाणाम्, संमूच्छिमचतुष्पदस्थलचर तत्प. प्तिापर्याप्तानां त्रयाणाम्, गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद स्थलचरतत्पर्याप्तापर्याप्तानाश्चेत्येवं नवसूत्राणि अयसेयानि, 'उरपरिसप्पथलयराणवि' उरःपरिसर्पस्थलचराणामपि औदारिसे प्रत्येक के छह प्रकार के आलापक, इस प्रकार नौ के औदारिकशरीर उनचालीस प्रकार के संस्थानवाले होते हैं। __थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों के औदारिकशरीर के विषय में भी नौ सूत्र होते हैं । समुच्चय स्थलचरों का, उनके पर्याप्तों का, अपर्याप्तों का, संमूर्छिम जलचरों का, उनके पर्याप्तों का, उनके अपर्याप्तों का, गर्भज स्थलचरों का, उनके पर्याप्तों का, उनके अपर्याप्तों का एक-एक सूत्र होने से सब मिलकर नौ सूत्र होते हैं। समुच्चय स्थलचरों की तरह चतुष्पद स्थलचरों के औदारिकशरीर संबंधी भी नौ सूत्र होते हैं । वे इस प्रकार-समुच्चय चतुष्पद स्थलचरों का, पर्याप्त चतुष्पद स्थलचरों का, अपर्याप्त चतुष्पद स्थलचरों का संमूच्छिम चतुष्पद स्थलचरों का, पर्याप्त संमूर्छिम चतुष्पदों का, अपर्याप्त संमूर्छिम चतुष्पदों का गर्भज चतुष्पद स्थलचरों का, पर्याप्त गर्भज चतुष्पद स्थलचरों का, अपर्याप्त गर्भज चतुष्पद स्थलचरों का, एक-एक सूत्र होने से नौ सूत्र होते हैं। સ્થલચર પચેન્દ્રિયતિયચીના દારિક શરીરના વિષયમાં પણ નવ સૂત્ર હોય છે. સમુચ્ચય થલચરોના, તેમના પર્યાપ્ત, અપર્યાપતેના, સંમૂર્ણિમ જલચરાના, તેમના પર્યાસ્તના, તેમના અપર્યાપ્તના, ગર્ભજ સ્થલચરના, તેમના પર્યાપ્તના, તેમના અપર્યાપ્તના એક એક સૂત્ર હોવાથી બધા મળીને નવ સૂત્ર થાય છે. સમુચ્ચય સ્થલચરની જેમ ચતુષપદ સ્થલચરના દારિક શરીર સંબંધી પણ નવ સૂત્ર થાય છે. તેઓ આ પ્રકારે સમુચ્ચય ચતુષ્પદ સ્થલચરેના, પર્યાપ્ત ચતુષ્પદ સ્થલચરેના, અપર્યાપ્ત ચતુષ્પદ સ્થલચરના, સંમૂછિમ ચતુષ્પદ સ્થલચરના, પર્યાપ્ત સંસ્ ઈિમ ચતુષ્પદના અપર્યાપ્ત સંમૂછિમ ચતુષ્પદેના, ગર્ભજ ચતુષ્પદ સ્થલચરેના, પર્યાપ્ત ગર્ભજ ચતુષ્પદ સ્થલચરાના, અપર્યાપ્ત ગર્ભજ ચતુષ્પદ સ્થલચરેના એક-એક સૂત્ર હવાથી નવ સૂત્ર થાય છે. प्र०८० श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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