SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 625
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२ प्रज्ञापनासूत्रे 'तं जहा-पज्जत्तग गम्भवतिय मणूसपंचिंदिय ओरालियसरीरे य, अपज्जत्तगगब्भवकंतिय मणूसपंचिदिय ओरालियसरीरे य' तद्यथा पर्याप्तकगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यपश्चेन्द्रियौदारिकशरीरश्च अपर्याप्तकगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरश्चेति, तथाचार्य निष्कर्षः-एकद्वित्रि चतुःपञ्चेन्द्रिय भेदादौदारिकशरीरं पञ्चप्रकारकं भवति, तत्रैकेन्द्रियौदारिकशरीरमपि पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिरूपैकेन्द्रियपश्च भेदात् पञ्चप्रकारकम्, तत्रापि पृथिवीकायिकैकेन्द्रियौदारिकशरीरमपि सूक्ष्मवादरभेदाद् द्विप्रकारकम्, तदपि द्विप्रकारकमेकैकम्, पर्याप्तापर्याप्तमेकाद् द्विविधमवसे यम्, तथैवाप्तेजोवायुवनस्पतिकायिकैकेन्द्रियौदारिकशरीराण्यपि प्रत्येकं चतुष्प्रकारकाणि इति सर्वसंमेलनेनैकेन्द्रियौदारिकशरीराणि विंशतिप्रकारकाणि अवसेयानि, द्वित्रिचतुरिन्द्रियौदारिकशरीराणि तु प्रत्येकं पर्याप्तापर्याप्तभेदाद् द्विप्रकारकाण्येव, पश्चेन्द्रियौदारिकशरीरं पुनस्तियग्योनिकमनुष्यभेदाद् द्विप्रकारकाण्येव, पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरं पुनस्तियग्योनिकमनुष्यभेदाद् द्विप्रकारकम्, तत्र । भगवान्-हे गौतम ! दो प्रकार का है, यथा-पर्याप्त गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर और अपर्याप्त गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर । अभिप्राय यह है कि एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय के भेद से औदारिक शरीर पांच प्रकार का है। इनमें से एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर भी पृथ्वी, अप, तेज, वायु और वनस्पति के भेद से पांच प्रकार का है। इसमें भी-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय औदारिकशरीर के सूक्ष्म और बादर के भेद से दो भेद हैं और इन दोनों के भी पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो-दो भेद होते हैं। इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक वायुकायिक और वनस्पति कायिक के औदारिक शरीर भी चार-चार के होते हैं। सब मिलाकर औदारिक शरीर के यहां वीस प्रकार प्रदर्शित किए गए हैं। द्वीन्द्रियों त्रीन्द्रियों और चतुरिन्द्रियों के औदारिक शरीर पर्याप्त और अपयांप्त के भेद से दो-दो प्रकार का ही होता हैं। | શ્રી ભગવાન હે ગૌતમ ! બે પ્રકારના છે, જેમકે-પર્યાપ્ત ગર્ભજ મનુષ્ય પંચેન્દ્રિય ઔદારિક શરીર અને અપર્યાપ્ત ગર્ભજ મનુષ્ય પદ્રિય ઔદારિકશરીર. અભિપ્રાય એ છે કે એકેન્દ્રિય, દ્વીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય અને પંચેન્દ્રિયના ભેદથી દારિક શરીર પણ પૃથ્વી, અપ, તેજ, વાયુ અને વનસ્પતિના ભેદથી પાંચ પ્રકારના છે. તેમાં પણ પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય–દારિક શરીરના સૂક્ષમ અને બાદરના ભેદથી બે ભેદ છે અને એ બન્નેના પણ પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્તના ભેદથી બે બે ભેદ થાય છે. એજ પ્રકારે અપકાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિકના દારિકશરીર પણ ચાર ચાર હોય છે. બધા મળીને દારિકશરીરના અહીં વીસ પ્રકાર પ્રદર્શિત કરાએલા છે. હીન્દ્રિયે, ત્રીન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિયોના દારિકશરીર પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્તના ભેદથી બે-બે પ્રકારના જ હોય છે. श्री प्रशानसूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy