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________________ प्रमेधिनी टीका पद २१ सू० १ शरीरभेदन निरूपणम् तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदा रिकशरीरञ्च, अपर्याप्तक संमूच्छिम चतुष्पद स्थलचरतिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरञ्च एवं गर्भव्युत्क्रान्तिकोऽपि, परिसर्पस्थलचर तिर्यग्योनिकपचेन्द्रि यौदारिकशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा - उरः है ? (गोमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम! दो प्रकार का कहा है (तं जहा - संमुच्छिम थलयर चप्पयतिरिक्खजोणियपंचिदिय ओरालियसरीरे य, गव्भचक्क तिय 1 उपय धलयर तिरिक्खजोणिय पंचिदिय ओरालियसरीरे य) वह इस प्रकार संमूर्छिम स्थलचर चतुष्पदतिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर और गर्भज चतुष्पद स्थलचरतिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर ( संमुच्छिम चउपय थलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिदिय ओरलियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! संमूर्छिम चतुष्पद स्थलचर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम! दो प्रकार का कहा है (तं जहा पज्जत्तगसंमुच्छिम चउप्पय थलयरतिरिक्ख जोणिय पंचिदिय ओरालिय सरीरे य, अपज्जत्तग संमुच्छिम चउप्पय थलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिदिय ओरालिसरीरे य) वह इस प्रकार - पर्याप्त संमूर्छिम चतुष्पद स्थलचर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और अपर्याप्त संमूर्छिम चतुष्पद स्थचचल तिरिग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर ( एवं गन्भवक्क लिए वि) इसी प्रकार गर्भज भी ( परिसप्प थलपरतिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?) परिसर्पतिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर हे भगवन् ! कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! ५९५ दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम! मे प्रअरना उद्यां छे ( तं जहा - संमुच्छ्मिथलयरच उप्पयतिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे य, Torariतिय उपयथलयर तिरिक्खजोणिप पंचिदिय ओरालियरीरे य) ते या प्रहार-संभूभि स्थसयर अतुष्यह तिर्यग्योनिङ પચેન્દ્રિય ઓદારિકશરીર અને ગજ સ્થલચરતિય ચૈાનિક પચેન્દ્રિય દારિકशरीर ( संमुच्छिमच उपयथल गर तिरिक्खजोणिय पंचिदियओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! संभूर्छिम तुष्यः स्थसयर तिर्यग्योनिः पथेन्द्रिय औौहारिङશરીર કેટલા પ્રકારના उद्यां छे ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते ?) हे गौतम! मे अारना छे (तं जहां पज्जत्तग संमुच्छिमचउप्पय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे य, अपज्जत्तग संमुच्छिम थलयर तिरिक्खजोणिय पंचिंदियओरालि यसरीरे य) ते मा પ્રકાર-પર્યાપ્ત સંમૂર્ણિમ ચતુષ્પદ સ્થલચર તિગ્યેાનિક પંચેન્દ્રિય ઔદારિકશરીર અને અપ પ્તસ’મૂર્છાિ મચતુપદ સ્થલચર તિયૈાનિક પચેન્દ્રિય ઔદ્વારિકશરીર. ( एवं गभवति वि) से प्रहार गर्भप (परिसप्पथलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ?) श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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