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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद६ अधिकारविषयक संग्रहणीगाथाप्रदर्श्यते ९२९ अथ षष्ठं पदं प्रारभ्यते अधिकारविषय संग्रहणीगाथामूलम्-बारस चउवीसाइं सअंतरं एगसमयकत्तोय । उवहण परभवियाउयंच अट्रेव आगरिसा ॥१॥ छाया-द्वादश चतुर्विंशतिः, सान्तरम्, एक समये कुतश्च ।। उद्वर्तना, पारभविकायुष्कञ्च अष्टावेव आकर्षा ॥१॥ टीका-पञ्चमे पदे औदयिकक्षयोपशमिकक्षायिकभावाश्रयः पर्यायपरि. णामनिर्णयः कृतः, अथ षष्ठे पदे औदयिक क्षायोपशमिकविषयान् प्राणिनामुपपातोद्वर्तनादीन् प्ररूपयितुं प्रथममादौ विषय (अधिकार) संग्रहणीगाथा माह-बारस चउवीसाइं स अंतरं एगसमयकत्तोय । उव्वहण परमविया उयंच अटेव आगरिसा ॥१॥ इति तत्र प्रथमं सामान्येन नरकादिगतिषु उप षष्ठ पद अधिकारसंग्रहिणी गाथा का शब्दार्थ (बारस) बारह (चउवीसाई) चौवीस (सअंतरं) अन्तरसहित (एग समय) एक समय (कत्तो य) कहाँ से ? (उब्वट्टण) उद्वर्तना (परभवियाउयं च) और परभव संबंधी आयु (अटेव आगरिसा) आठ आकर्षे ॥१॥ टीकार्थ-पंचम पद में औदयिक, क्षायोयशमिक और क्षायिक भाव के निमित्त से होने वाले जीव के पर्यायों का निरूपण किया गया है। इस छठे पद में कर्मों के उदय तथा क्षयोयशम से होने चाले प्राणियों के उपपात, उद्वर्तन आदि की प्ररूपणा करने के लिए प्रारंभ में विषयसंग्रहिणीगाथा कहते हैं-इस पद में पहले छ ५४ અધિકાર સંગ્રહણી ગાથાને અર્થ ४ाथ-(बारस) ॥२ (चउवीसाई) योवीस (सअंतरं) मन्त२ सहित (एगसमय) मे समय (फत्तोय) यांथी (उव्वट्टणा) उतना (परभवियाउं च) मन ५२१ समधी मायु (अट्रेव आगरिसा) मा २४॥ ११ ટીકાથ–પાંચમાં પદમાં ઔદયિક ક્ષેપથમિક અને ક્ષાયિક ભાવના નિમિત્તથી થવાવાળા જીવન પર્યાનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે. આ છઠ્ઠા પદમાં કર્મોના ઉદય તથા ક્ષપશમથી થવાવાળા પ્રાણિયેના ઉપપાત ઉદ્વર્તન વિગેરેની પ્રરૂપણ કરવા માટે પ્રારંભમાં વિષય સંગ્રહિણી ગાથા કહે છે. આ પદમાં પહેલા સામાન્યપણાથી નરકાદિ ગતિમાં ઉ૫પાત અને प्र० ११७ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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