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________________ प्रबोधिनी टीका पद ५ सू.१६ सामान्यस्कन्धपर्यायनिरूपणम् ९०९ मणुकोसलुक्खे, सट्टाणे छट्टाणवडिए, से तं रुवि अजीव पज्जवा, से त्तं अजीव पजवा, इति पण्णवणाए भगवईए विसेसपर्यं समत्तं ॥ सू० १६ ॥ छाया - जघन्य प्रदेशिकानां भदन्त ! स्कन्धानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते जघन्य प्रदेशिकानां स्कन्धानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यप्रदेशिकः स्कन्धो जघन्य प्रदेशिकस्य स्कन्धस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया स्याद्धीनः स्यात्तुल्यः स्यादभ्यधिकः, यदा हीनः प्रदेशहीनः अथ अभ्यधिकः प्रदेशासामान्य स्कन्धपर्यायवक्तव्यता शब्दार्थ - (जहण्णपए सियाणं भंते ! संधाणं पुच्छा ?) हे भगवन् ! जघन्य प्रदेशी स्कंधों की पृच्छा ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णता) हे गौतम! अनन्त पर्याय कहे हैं. (से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ जहण्णपएसियाणं खंधाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किसकारण ऐसा कहा कि जघन्य प्रदेशी स्कंधों के अनन्त पर्याय कहे हैं (गोयमा ! जहण्णपए सिए खंधे जहण्णपएसियस्स खंघस्स दबट्टयाए तुल्ले) हे गौतम ! जघन्यप्रदेशी स्कंध जधन्यप्रदेशी स्कंध से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य ( पसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य (ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अन्भहिए) अवगाहना की दृष्टि से कदाचित् हीन, कदाचित तुल्य, काचित् अधिक (जइ हीणे पएसहीणे) यदि हीन हो तो एक प्रदेशहीन ( अह अन्भहिए पएस अन्भहिए સામાન્ય સ્કન્ધ પર્યાય વક્તવ્યતા शब्दार्थ - जहण्णपएसियाणं भंते! संधाणं पुच्छा १) हे भगवन् ! धन्य प्रदेशी सुन्धोनी पृच्छा ? (गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय उद्या छे ( से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ - जहण्णपएसियाणं खंधाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता ?) डे लगवन् ! शा भरणे खेभ उद्धुं छेडे भधन्य प्रदेशी सुन्धाना शानन्त पर्याय उद्या छे ? ( गोयमा ! जहण्णपएसिए खंधे जहण एसियस धस्स दव्वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम! धन्य प्रदेशी स५न्ध मधन्य प्रदेशी सुन्धथी द्रव्यनी दृष्टिखे तुझ्य (परसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशानी अपेक्षाये तुझ्य (ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अन्महिय ) अवगाडुनानी दृष्टियो उहायित हीन, अहाथित तुझ्य उहायित अधिक (जइ हीणे पएस શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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