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________________ ૨ प्रज्ञापनासूत्रे स्थानपतितः जघन्यगुणशीतानामनन्तप्रदेशिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - जघन्यगुणशी तानामनन्त प्रदेशिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः १ गौतम ! जघन्यगुणशीतोऽनन्तप्रदेशिको जघन्यगुणशीतस्य अनन्तप्रदेशिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया पदूस्थानपतितः, अवगाहनार्थतया - चतुःस्थानपतितः, स्थित्या चतुःस्थानपतितः, वर्णादि ( जहण्णगुणसीयाणं अतिपए सियाणं पुच्छा ?) जघन्यगुण शीत अनन्तप्रदेशी स्कंधों की पृच्छा ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ-जहण्णगुणसीयाणं अणतपएसियाणं अता पज्जवा पण्णत्ता ?) किस अपेक्षा से हे भागवन् ! ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुण शीत अनन्तप्रदेशी स्कंधों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! जहण्णगुण सीए अनंतपए सिए जहण्णगुण सीयस्स अनंतपए सियस्स दव्यट्टयाए तुल्ले) हे गौतम! जघन्यगुण शीत अनन्त प्रदेशी स्कंध जघन्यगुण शीत अनन्तप्रदेशी स्कंध से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य (एसट्टयाए छट्ठाण वडिए) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित (ओगाणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहना की अपेक्षा चतुस्थानपतित (ठिईए चउद्वाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (वण्णाइपज्जवेहिं छट्टाणवडिए) वर्णादि के पर्यायों से षट्स्थानपतित ( सीयफा सपज्जवेहिं तुल्ले) शीत स्पर्श के पर्यायों तुल्य से अवसेसेहिं વિશેષતા એ છે કે સ્વસ્થાનમાં ષદ્રસ્થાન પતિત થાય છે. ( जहणगुणसीयाणं अणतपएसियाणं पुच्छा) धन्य गुणु शीत अनंत अहेश વાળા સ્કંધાના સબંધમાં પ્રશ્ન છે. ( गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे गौतम! अनंत पर्याय उद्या छे. ( से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ जहण्णगुणसीयाणं अणतपएसियाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता ?) या अणुशी हे भगवन् खेभ धुं छे से धन्य गुणु शीत अनंत प्रदेशी स्४न्धोना अनन्त पर्याय ह्या छे ? (गोयमा ! जहण्णगुणसीए अणतपएसिए जहण्णगुणसीयस्स अनंत एसियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम! धन्य गुयु શીત અનંત પ્રદેશી સ્કંધ - જઘન્ય ગુણ શીત અનત પ્રદેશી સ્કન્ધથી દ્રવ્યની अपेक्षाथी तुझ्य छे. (एपसट्टयाए छट्टाणवडिए) प्रदेशोनी अपेक्षाये षटस्थान पतित (ओगाहट्टयाए चाणवडिए) भवगाडुनाथी यतुःस्थानपतित (ठिईए चउट्ठाण वडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित (वण्णाइरज्जवेहिं छठाणवडिए) वर्णाहि पर्यायथी षटस्थान पतित ( सीयफासपज्जवेहिं तुल्ले) शीत स्पर्शना पर्यायाथी તુલ્ય શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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