SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 557
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४२ प्रज्ञापनासूत्र गौतम ! एवमुच्यते-ते खलु नो संख्येयाः नो असंख्येयाः, अनन्ताः । टीका--प्रथमे पदे जीवाजीवप्रज्ञापनाभेदेन प्रज्ञापनाया द्वैविध्यस्योक्तत्वेन जीवानाम् अजीवानाञ्च गुणापर्यायवद् द्रव्यलक्षणोक्तेः जीवाजीवपर्यायभेदान् प्ररूपयितुमाह - 'कइविहा णं भंते ! पज्जवा पण्णत्ता' हे भदन्त ! कतिविधाः खलु पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? यद्यपि अनन्तरपदे नैरयिकादिपर्यायरूपेण प्राणिनामवस्थितिः, प्रतिपादितास्तथापि औदयिक क्षायोपशमिक क्षायिकभावाश्रयपर्यायाणामवधारणार्थ भगवान्-आह-'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहा पज्जवा पण्णत्ता ?' द्विविधाः असंख्या वैमानिक (अणंता सिद्धा) अनन्त सिद्ध हैं (से एएणडेणं गोयमा !) हे गौतम ! इस हेतु से (एवं वुच्चइ) ऐसा कहा जाता है (ते णं नो संखिज्जा, नो असंखिज्जा, अणंता) वे संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, अनन्त हैं। । १॥ टीकार्थ-प्रथम पद में प्रज्ञापना दो प्रकार की कही गई है-जीव प्रज्ञापना और अजीव प्रज्ञापना । जीव और अजीव द्रव्य हैं और द्रव्य का लक्षण गुण-पर्यायवत्त्व कहा गया है, अतएव इस पद में जीव और अजीव के पर्यायों का निरूपण किया जाता है प्रश्न किया गया है-हे भगवन् ! पर्याय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? यद्यपि पिछले पद में नैरथिक आदि के रूप में जीवों की स्थिति रूप पर्याय का प्रतिपादन किया गया है, तथापि औदयिक, क्षायोपशमिक एवं क्षायिक भाव रूप जीव पर्यायों का तथा अजीव पर्यायों का निश्चय करने के लिए भगवान उत्तर देते हैं-गौतम ! पर्यव दो प्रकार के हैं-जीवपर्यव और अजीव पर्यव । पर्यव, पर्याय, गुण, वैमानि (अणंता सिद्धा) मनन्त सिद्ध छ (से एएणठेणं गोयमा !) २॥ तथा गीतम ! (एवं बुचइ) सेभ ४उवाय छ (तेणं नो सखिज्जा, नो असं खिज्जा, अणंता) तेस। सन्यात न मसात नहि. ५५ अनन्त छ ॥ १ ॥ ટીકાથ–પ્રથમ પદમાં ભગવાને પ્રજ્ઞાપના બે પ્રકારની કહી છે. જીવ પ્રજ્ઞાપના અને અજીવ પ્રજ્ઞાપના. જીવ અને અજીવ દ્રવ્યનું લક્ષણ ગુણ–પર્યાયત્વ કહેલ છે. તેથી જ આ પદમાં જીવ અને અજીવના પર્યાનું નિરૂપણ કરાય છે પ્રશ્ન કર્યો છે કે હે ભગવન્! પર્યાય કેટલા પ્રકારના કહેલા છે? જે કે પાછલા પદમાં નરયિક આદિના રૂપમાં જીની સ્થિતિ રૂપ પર્યાયનું પ્રતિપાદન કરાયેલું છે. તથાપિ ઔદયિક. ક્ષયે શસિક, તેમજ ક્ષાયિક ભાવ રૂપ જીવ પર્યાને તથા અજીવ પર્યાનો નિશ્ચય કરવાને માટે ભગવાન ઉત્તર આપે છે – હે ગૌતમ! પર્યવ બે પ્રકારના છે–જીવ પર્યવ અને અજીવ પર્યવ, પર્યવ, શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy