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________________ १०२४ प्रज्ञापनास्त्रे धन्ते ? गौतम ! संख्येयवर्षायुष्केभ्यो नो असंख्येयवर्षायुष्केभ्य उपपद्यन्ते, यदा संख्येयवर्षायुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते किं पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्तकेभ्यः उपपद्यन्ते ? गौतम ! पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, नो अपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, यदा पर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्कककर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते किं सम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमि के गर्भजमनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (किं संखेनवासाउएहितो, असंखेज्जवासाउएहितो उववज्जति ?) क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वालों से ? (गोयमा ! संखेज्जवासाउएहितो, नो असंखेज्जवासाउएहितो उववज्जंति) गौतम ! संख्यात वर्ष की आयु वालों से उत्पन्न होते हैं असंख्यात वर्ष की आयु वालों से नहीं ___(जइ संखेज्जबासाउयकम्मभूमगगन्भवतियमणूसेहितो उवव. ज्जंति) यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (कि पज्जत्तेहिं उववति, अपज्जत्तेहिं उववज्जति ? क्या पर्याप्तों से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उववज्जति, नो अपजत्तहिंतो उववजति) गौतम ! पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तकों से नहीं उत्पन्न होते (जइ पज्जत्तसंखेजवासाउयकम्मभूमगगन्भवतियमणुस्सेहितो उववति) यदि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिजगर्भजमनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (किं सम्मदिट्टीपज्जत्तगसंखेजवासाउय कम्मभूमि म भनुष्याथी उत्पन्न थाय छे. (किं संखेज्जवासाउएहितो, असंखेज्जवासाउएहितो उववज्जति ?) शुसज्यात वर्षनी मायुपाणा मनुष्याथी उत्पन्न याय छ या मसभ्यात नी मायुवा मनुष्याथी ५न्न थाय छे ? (गोयमा ! संखेज्जवासाउएहितों,, नो असंखेज्जवासाउएहि तो उववज्जति) गौतम ! सध्यात વર્ષની આયુવાળાથી ઉત્પન્ન થાય છે. અસંખ્યાત આયુવાળાથી નહીં. (जइ संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवतियमणूसहिंतो उववज्जति) यह સંખ્યાત વર્ષની આયુવાળા કર્મભૂમિજ ગર્ભજ મનુથી ઉત્પન્ન થાય છે. (किं पज्जत्तेहि उववज्जति,अपज्जत्तेहिं उबवज्जति ?) (पर्याप्तथी उत्पन्न थाय छ या मर्याप्तथी उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति ?) गौतम ! पर्यापतीथी ५न्न थाय छ, मर्यास्तथी नथी ५न्न यता (जइ पज्जत्तसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भ. वक्कंतिय मणूस्सहिंतो उववज्जति) यह पर्याप्त संध्यात वर्षायु ४ भभूमिका शल मनुष्याथी जयन्न थाय छे. (कि सम्मदिडि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउय. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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