SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०९२ , प्रज्ञापनासूत्रे भणितव्याः, नवरम् - असंख्येयवर्षायुष्का कर्म भूमिगवर्जेभ्य उपपद्यन्ते, एवं यावत् सहस्रारकल्पोपगवैमानिकदेवा भणितव्याः, आनत देवा: खलु भदन्त ! केभ्य उपपद्यन्ते, किं नैरयिकेभ्यः, किं पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्यः, मनुष्येभ्यः देवेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! नो नैरयिकेभ्य उपपद्यन्ते, नो तिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, नो देवेभ्य उपपद्यन्ते यदा मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते किं और ईशान कल्प के देवों का उपपात कहना चाहिए ( एवं सर्णकुमार देवा वि भाणियन्वा) इसी प्रकार सनत्कुमार देवों का भी उपपात कहना चाहिए (नवरं ) विशेष (असंखेज्जवासाज्य - अकम्मभूमगथज्जेहिंतो उववज्जंति) असंख्यात वर्ष की आयु वाले एवं अकर्मभूमिजों को छोड कर उत्पन्न होते हैं (एवं) इसी प्रकार (जाव) यावत् (सहस्सारकपोवगवेमाणिया देवा भाणियव्वा) सहस्रार कल्प में उत्पन्न वैमानिक देवों तक कहना चाहिए ( आणयदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ?) भगवन् ! आनतदेव किनसे उत्पन्न होते हैं ? (किं नेरइएहितो) क्या नारकों से ? (किं पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो ) क्या पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से ( मणुस्सेहिंतो) मनुष्यों से (देवेहिंतो) देवों से (उववज्जंति) उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! ( णो णेरइएहिंतो उववज्जंति) नारकों से उत्पन्न नहीं होते ( नो तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति) तियंचों से उत्पन्न नहीं होते ( मणुस्सेहिंतो उववज्जंति) मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (णो देवेहिं उववज्जति) देवों से उत्पन्न नहीं होते उदपना हेवाना पशु उपचात उहे वो लेये. (एवं सणकुमारदेवा वि भाणियव्वा) भेवे अहारे सनत्कुमार देवानी पशु उपयात उवा लेहये (नवरं) विशेष (असंखेज्जवासाज्य अकम्मभूमगवज्जेहिंतो उववज्जति) असण्यात वर्षनी आयुवाजा तेभ अर्मभूमिले शिवाय उत्पन्न थाय छे ( एवं) से प्रारे (जाव) यावत् (सह • स्मारक पोवगवेमाणिया देवा माणियव्वा) सहसार मुदयमा उत्पन्न थनारा वैभानि દેવા સુધી કહેવુ જોઈએ. ( आणयदेवाणं भंते! कओहिंतो उववज्जंति ?) हे लगवन् ! मानत हेवे। अनाथी उत्पन्न थाय छे ? ( कि नेरइएहितो) शु नारथी (किं पंचिदियतिरिक्ख. जोणिए हिंतो ) शुद्धं यथेन्द्रिय तिर्यथोथी ( मणुस्सेहिं तो) मनुष्योथी (देवेहिंतो ) हेवेोथी ( उववज्जंति) उत्पन्न थाय छे ? ( गोयमा !) डे गौतम (जो नेरइएहिंतो उववज्जंति) नार}|थी उत्पन्न नथी थता (नो तिरिक्खोजोणिएहिंतो उववज्जति) तिर्ययाथी उत्पन्न नथी थता ( मणुस्सेहिंतो उत्रवज्जंति ) मनुष्यथी उत्पन्न थाय શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy