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________________ प्रज्ञापनासूचे पीठधारिणो विचित्रहस्ताभरणः, विचित्रमालामौलिमुकुटाः, कल्याणकप्रवरवत्रपरिहिताः, कल्याणकावरमाल्यानुले एनधराः, भास्वरबोन्दयः, प्रलम्बवनवनमालाधराः, दिव्येन वर्णन, दिव्येन गन्धेन, दिवेन स्पर्शन, दिव्येन संहननेन, दिव्येन संस्थानेन, दिव्यया ऋद्धया, दिव्ययाधुत्या, दिव्यया प्रभया, दिव्यया छायया, दिव्येन अर्चिषाः, दिव्येन तेजसा, दिव्यया लेश्यया दशदिशः उद्योतयन्तः, प्रभासयन्तस्ते खलु तत्र स्वेषाम् स्पेषाम् असंख्येय करने वाले (विचित्तहत्याभरणा) हाथों में विचित्र भूषण पहनने वाले (विचित्तमालामउली) विचित्र माला वाले मुकुट के धारक (कल्लाणग पवरवस्थपरिहिया) काल्याणकारी उत्तम वस्त्र पहने हुए (कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणधरा) कल्याणकर माला एवं अनुलेपन को धारण करने वाले (भासुरबोंदी) देदीप्यमान शरीर वाले (पलंबवणमालधरा) लम्बी वनमाला पहनने वाले (दिव्वेणं वण्णेणं) दिव्य वर्ण से (दिव्वेणं गंधेणं) दिव्य गंध से (दिव्वेणं फासेणं) दिव्य स्पर्श से (दिव्वेणं संघयणेणं) दिव्यणं संहनन से (दिवेणं संठाणेणं) दिव्य संस्थान से (दिव्वाए इड्डीए) दिव्य ऋद्धि से (दिव्वाए जुईए) दिव्य द्युति से (दिव्वाए पभाए) दिव्य प्रभा (से दिव्याए छायाए) दिव्य कान्ति से (दिव्वाए अच्चीए) दिव्य ज्योति से (दिव्वेणं तेएणं) दिव्य तेज से (दिव्वाए लेस्साए दिव्य लेश्या से (दस दिसाओ) दशों दिशाओं को (उज्जोवेमाणा) उद्योतित करते हुए (पभासेमाणा) प्रकाशित करते हुए (तेणं) वे (तत्थ) वहां कन्नपीठधारी) सुन्दर, सो तथा स्थाने सात पी8 नामना माभूषणाने धा२५५ ४२वावा (विचित्तहत्थाभरणा) डायामा वियित्र भूषा धा२९१ ४२वा (विचित्तमालामउली) वियित्र मावा भुटना पा२४ (कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया) ४८या ३री उत्तम पख घा२१ ४२॥ (कल्लाणग पवर मल्लाणुलेवणधरा) ४च्या ४२ भासा तभन्न मनुखेपनने या ४२वावाणा (भासुरबोंदी) दीप्यमान शरीरवाणा (पलंबवणमालधरा) सभी वनमाणा पारना(दिव्वेणं वण्णेणं) हिव्य वाणु थी (दिव्वेणं गंधेणं) हिव्य थी (दिव्वेणं फासेणं) हिव्य २५ थी (दिव्वेणं संघयणेणं) दिव्य सननथी () (दिव्वेणं संठाणेणं) हिव्य संस्थानथी (दिव्वाए इड्ढीए) दिव्य ऋद्धिथी (दिव्वाए जुइए) हिव्यतिथी (दिव्वाए पभाए) हिव्यप्रमाथी (दिव्वाए छायाए) दिव्य तिथी (दिव्वाए अच्चीए) हिव्य ज्योतिथी (दिव्वेणं तेएणं) दिव्य तेथी (दिव्वाए लेस्साए) दिव्य वेश्याथी (दस दिसाओ) ६शे माने (उज्जोवेमाणा) शित ४२।। (पभासेमाणा) प्रयोतित ४२॥ (तेणं) ते (तत्थ) त्यi (साणं साणं) पात શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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