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________________ ७९२ प्रज्ञापनासूत्रे भुजगपतयः, महाकायाः, गन्धर्वगणाश्च निपुणगन्धर्वगीत रतिकाः अणपर्णिक पणपनिक ऋषिवादित भूतवादितकन्दितमहाकन्दिताश्च कूष्माण्ड पतङ्गदेवाः, चश्चलचलचपलचित्तक्रीडनद्रवप्रियाः गम्भीरहसितगी तनतनरतयो वनमालापीडमुकुटकुण्डलस्वच्छादविकुविता भरणचार भूषण धराः सर्वर्जुकर भिकुसुमसुरचित प्रलम्बशोभमानकान्तविकसच्चित्रवनमालारचितवक्षसः कामकामाः कामरूपदेह( किंनरा ) किन्नर (किंपुरिसा) किम्पुरुष ( भुयगवइणो) भुजगपति ( महाकाया) महाकाय (गंधव्वगणा य) और गंधर्वगण (निउणगंधव्वगीरणो) निपुण गंधर्व-गीत रुचि वाले (अणवपिणय) अणपर्णिक ( पणवन्निय) पणपन्निक (इसिवाइय) ऋषिवादित (भूयवाइय) भूतवादित (कंदिय) क्रन्दित ( महाकंदिय) महाक दित (य) और (कुड) कूष्माण्ड (पगदेवा) पतंगदेव ( चंचलचल चलचित्तकीलणदवप्पिया) चंचल तथा अत्यन्त चपल क्रीडा एवं परिहास प्रेमी ( गहिर हसियगीयच्चणरई) गंभीर हंसी, गीत और नृत्य की रुचि वाले (वणमालामेल मउडकुंडलसच्छंद विउब्वियाभरणचारुभूसणधरा) वनमाला, कलंगी, मुकुट, कुंडल तथा इच्छानुसार विकुर्वे हुए आभरणों से सुन्दर भूषण धारण करने वाले ( सच्चोग्यसुरभिसुकुम सुरइयपलंच सोहंतकंतविहसंत चित्तवणमालारहयवच्छा) सब ऋतुओं के सुगंधित फूलों से बनी लम्बी, शोभनीय, सुन्दर खिलती हुई विचित्र वनमाला को वक्षस्थल पर धारण करने वाले (कामकामा) इच्छानुसार कामभोग सेवन करने वाले ( कामख्वदेहधारी ) इच्छानुसार यक्ष (रक्खसा) राक्षस (किंनरा ) डिनर (किंपुरिसा) (४२५३५ ( भुयगवइणो) लुभ जयति ( महाकाया ) भडाउअय (गंधव्व गणाय) मने गंधर्वगण ( निउण गीयरइणो ) निथुषु गन्धर्वजीत इथिवाना (अणवण्णिय) अणुपर्शि (पण्णवन्निय) पशुपन्नि (इसिवाइय) ३षिवाहित (भूय्वाइय) भूतवाहित (कंदिय) उन्दित ( महाकंदिया) महामुन्हित (य) भने (कुहंड) कुष्मांड (पयंगदेवा) पतंगदेव (चंचलचलचवलचित्त कीलणदवपिया) ચંચળ તથા અત્યન્ત ચપલકીડા તેમજ પરિહાર પ્રેમી (गहिरहसियगीपणचणरई) गंभीर सेवा गीत रहने नृत्यनी ३चिवाणा (घणमाला मेलमउडकुंडलसच्छंद विउब्विया भरणा चारुभूसणधरा) पनभासा, उलगी, મુગટ, કુંડલ, તથા ઈચ્છાનુસાર વિકણાથી બનાવેલા સુન્દર ભૂષણ धारण ४२नारा (सव्वोउय सुरभि कुसुमसुरइयपलं सोहंतकं तविहसंतचित्तवणमालारइयवच्छा) मधी ३तुमोना सुगंधित डुबोथी भनेसी सांगी शोलायमान सुन्दर मिसेसी विचित्र वनभासाने वक्षस्थल पर धारण ४२वावाणा, ( कामकामा) २च्छानुसार अभलोगो सेवन ४२नारा (कामरूप देहधारी) छानुसार ३५ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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