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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२ अप्कायिकानां स्थानानि समुद्रेषु सर्वेषु चैव जलाशयेषु जलस्थानेषु, अत्र खलु बादराप्कायिकानां पर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि । उपपातेन लोकस्यासंख्येयभागे, समुद्घातेन लोकस्यासंख्येयभागे । स्वस्थानेन लोकस्यासंख्येयभागे । कुत्र खलु भदन्त ! बादराकायिकानामपर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! यत्रैव बादराप्कायिकानां पर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि, तत्रैव बादराकायिकानामपर्याप्तकानां स्थानानि पोखरों में (वप्पिणेसु) क्यारियों में (दीवेसु) द्वीपों में (समुहेसु) समुद्रों में (सव्वेसु चेव जलासएसु) सभी जलाशयों में (जलट्ठाणेसु) जलस्थानों में (एस्थणं बायरआउकाइयाण) उक्त स्थानों में बादर जलकायिकों के (पज्जत्तगाण) पर्याप्तकों के (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) कहे हैं। (उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे) उपपात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में। (समुग्घाएण) समुदघात की अपेक्षा (लोयस्स असंखेजइभागे) लोक के असंख्यातवें भाग में (सहाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे) स्वस्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में । (कहि णं भंते ! बायरआउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता?) हे भगवन् ! बादर अप्कायिकों के अपर्याप्त जीवों के स्थान कहां कहे हैं ? (जत्थेव बायरआउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता) जहां बादर अप्कायिकों के पर्याप्तों के स्थान कहे हैं (तत्थेव बायरआउकाइयाणं अपजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता) वहीं बादर अप्कायिक अपर्याप्तों (निझरेसु) १२-यामा (चिल्ललेसु) ढीयोमा (पल्ललेसु) सप।मां (वप्पिणेसु) ४यारीमामा (दीवेस) द्वीपोमा (समुद्देसु) समुद्रोमा (सव्वेसु चेव जलासएसु) यां योमा (जलदाणेसु) ४६ स्थानमा (एत्थणं बायर आउ काइयाणं) त स्थानमा ४२ यिना (पज्जत्तगाणं) यातना (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) ४ह्या छ (उववायेणं लोयरस असंखेज्जइभागे) ५५ातनी अपेक्षा सोना सस. यातमा भागमा (समुग्धारण) समुद्धातनी अपेक्षा (लोयस्स असंखेज्जइ भागे) सोना मन्यातमा मामा (सठ्ठाणेणं लोयरस असंखेज्जइ भागे) स्वस्था નની અપેક્ષાએ લેકના અસંખ્યાતમાં ભાગમાં (कहि ण भंते ! बायर आउकाइयाण अपज्जत्तगाण ठाणा पण्णत्ता ?) 3 ભગવન્અપર્યાપ્ત બાદર અષ્કાયિકના જીના સ્થાન કયાં કહ્યાં છે? (sस्थेव वायर आउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता) यां ॥४२ २.पिछीना पर्याप्तीना स्थान छ (तत्थेव बायर आउ काइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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