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________________ प्रज्ञापनासूत्रे एतां श्चैवतु भावान् ,उपदिष्टान् यः परेण श्रद्दधाति । छद्मस्थेन जिनेन वा, उपदेशरुचिरिति ज्ञातव्यः ॥४॥ यो हेतुमजानानः, आज्ञया रोचयति प्रवचनं तु । एवमेव नान्यथेति च, एष आज्ञारुचिर्नाम ॥५॥ यः सूत्रमधीयानः, श्रुतेन अवगाहते तु सम्यक्त्वम् । अङ्गेन अङ्गबाह्येन वा, स सूत्ररुचिरिति ज्ञातव्यः ॥६॥ त्ति य) ये ऐसे ही हैं, अन्यथा नहीं हैं, इस प्रकार (निसग्ग रुइ त्ति नायव्चो) निसर्ग रुचि है, ऐसा जानना चाहिए। (३) __ (एए चेव उ भावे) इन्हीं भावों को (उवइटे जो परेण सद्दहइ) दूसरे के द्वारा उपदिष्ट पर जो श्रद्धा करता है (छउमत्थेण जिणेण व) छद्मस्थ या केवली द्वारा (उचएसरुइत्ति नायव्यो) उपदेशरुचि जानना चाहिए। (४) (जो हेउमयाणं तो) जो हेतु को न जानता हुआ (आणाए) जिनाज्ञा से (रोयए पवयणं तु) प्रवचन पर श्रद्धा करता है (एमेव नन्नह त्ति य) यह ऐसा ही है, अन्यथा नहीं, इस प्रकार (एसो आणाई नाम) यह आज्ञारुचि सम्यग्दर्शन है (५) ___ (जो सुत्तमहिज्जंतो) जो सूत्र का अध्ययन करता हुआ (सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं) श्रुत के द्वारा सम्यक्त्व प्राप्त करता है (अंगण बाहिरेण व) अंग शास्त्रों से या अंगबाह्य शास्त्रों से (सो सुत्तरुइ त्ति णायच्चो) उसे सूत्ररुचि समझना चाहिए (६) तभा छ अन्यथा नथी, मेवी शते (निसग्गारुइत्ति नायव्यो) निसरी ३५ छ तम त य (3) (एए चेव उ भावं) •n नावाने (उवइटे जो परेण सद्दहइ) मीन २॥ अपहिष्ट ५२ ? श्रद्ध! २१ छ (छउमत्थेण जिणेणव) छभस्थ मा२ पक्षी द्वारा (उवएसरुइत्ति नायव्यो) उपदेश ३थि लागुवा ले (४) (जो हेउ मयाणंतो) रे तुने तया विना ५ (आणाए) Manी (रोयए पवयणं तु) प्रवयन ५२ श्रद्धा ४२ छ (एमेव नन्हत्तिय) सेम४ छ अन्य था नथी, ये रे (एसो आणा रुई नाम) २॥ २॥ ३५ सभ्य०४शन छ. (५) (जो सुत्त महिज्जंत्तो) २ सूत्रनु २५ध्ययन ४२त ४२di (सुएण ओगाहई उ संमत्तं) श्रुत द्वारा सभ्यत्व प्रात ४२ छ (अंगेण बाहिरेण वा) २41 सोथी २५॥२ मा साथी (सो सुत्तरुइत्ति नायवो) तेने सूत्र ३यि । नये (६) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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