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________________ प्रज्ञापनासूत्रे काइया।से किं तं वायरवणस्तइकाइया ? बायरवणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पत्तेयसरीर बायरवणस्सइकाइया य, साहारणसरीर बायरवणस्सइकाइया य ॥सू०१८॥ छाया-अथ के ते वनस्पतिकायिकाः ? वनस्पतिकायिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाश्च, बादरवनस्पतिकायिकाश्च । अथ के ते सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः ? सूक्ष्मवनस्पतिकायिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकसूक्ष्मवनस्पतिकायिकाश्च, अपर्याप्तक सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाश्च । ते एते सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः । अथ के ते बादरवनस्पतिकायिकाः ? बादवनस्पतिकायिका शब्दार्थ-(से किं तं वणस्सइकाइया) वनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार के हैं (दुविहा) दो प्रकार के (पन्नत्ता) कहे गए हैं (तं जहा) ये इस प्रकार हैं (सुहुमवणस्सइकाइया य) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और (बायरचणस्सइकाइया य) बादर वनस्पतिकायिक (से किं तं सुहुमवणस्सइकाइया ?) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक कितने प्रकार के हैं ? (दुविहा) दो प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (पज्जत्तगसुहुमवणस्सइकाइया य) पर्याप्तक सूक्ष्मवनस्पतिकायिक और (अपज्जत्तगसुहमवणस्सइकाइया) अपर्याप्तक सूक्ष्मवनस्पतिकायिक (सेत्तं सुहमवणस्सइकाइया) यह सूक्ष्मवनस्पतिकायिकों की प्ररूपणा हई। (से कि तं बायरवणस्सइकाइया) बादरवनस्पतिकायिक कितने प्रकार के हैं ? (बायरवणस्सइकाइया) बादरवनस्पतिकायिक (दुपिहा) दो प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तंजहा) वे इस प्रकार (पत्तेयसरीरबायरवणस्सइ शहाथ-(से कि तं वणस्सइकाइया) वनस्पति यि १ ४२न छे (वणस्सइकाइया) पन२५ति थि: ७१ (दुविहा) मे ५४२॥ (पन्नत्ता) या छ (तं जहा) ते॥ २॥ ४२ छ (सुहुमवणस्सइकाइया य) सूक्ष्म वनस्पति यि भने (बायरबणस्सइकाइया य) ॥४२ बनस्पतिशय (से कि तं सहमवणस्सइकाइया) सूक्ष्म वनस्पतिय४० ३८ ४२॥ छ ? (सुहुमवणस्साइकाइया) सूक्ष्म वनस्पतिथि: । (दुविहा) मे ४२ना (पण्णत्ता) छ (तं जहा) तसो मा ४ारे (पज्जत्तसुहुमवणस्सइकाइया य) पर्याप्त सूक्ष्म, वनपति यि भने (अपज्जत्तसुहुमवणस्सइकाइया) अपर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिय (से तं सुहुमवणस्सइकाइया) २॥ सूक्ष्म वनस्पति यिनी प्र३५९॥ २४ __ (से कि तं बायरवणस्सइकाइया) मा४२ वनस्पतिथि: 2ी. तना छ ? (बायरवणस्सइकाइया) म॥४२ वनस्पतिय: (दुविहा) में प्र४।२। (पण्णत्ता) ४ा छे (तं जहा) ते॥ २॥ ४ारे (पत्तेयसरीर बायरवणस्सइकाइया य) प्रत्येय શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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