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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.११४ चन्द्र विमानवाहकदेवसंख्यादिनि० ९६९ गुलियपिंगलक्खाणं) थिरलट्ठ (पउह) वट्टपीवरसुसिलिट्ठसुविसिट्टतिक्खदाढाबिडंवितमुहाणं रत्तुप्पलपत्तमउयसुंकुमालतालुजीहाणं (पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं) विसालपीवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसयपसत्थसुहुमलक्खणविच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं' हे गौतम ! चन्द्रादि विमानानि जगतः स्वभावातू निरालम्बानि तथापि-कि यन्तो विनोदिनोऽनेकरूपधराः अभियोगिका देवाः सततवहनशी लेषु विमानेषु अधःस्थित्वा परिवहन्ति कौतूहलात्, तत्र केचित् भाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं (महुगुलियपिंगलक्खाणं) थिरलट्ठ (पउह) वट्टपीवरसुसिलिट्ठसुविसिट्टतिक्खदाढाविडंबितमुहाणं' ये सिंह श्वेत वर्ण के होते हैं, सुभग होते हैं तथा सान्द्रधि का गोक्षीर के फेनों का और रजत का समूह जैसा शंखतल के समान विमल और निर्मल होता है एवं जैसा इसका प्रकाश होता है वैसा ही प्रकाश इन सिंहों का होता है इनकी आंखें मधु की गोली जैसी पीले वर्ण की होती है मुख इनका स्थिर और कान्त ऐसे प्रकोष्ठों से युक्त एवं परस्पर में सटी हुई तीक्ष्ण दाढों से जो कि बहुत ही अधिक मजबूत होती हैं सहित होता है 'रत्तुप्पल. पत्तमउयसुकुमालतालुजीहाणं पसंतसंतवेरुलियाभिसंतकक्कडनहाणं इनकी जिह्वा एवं तालु लाल कमल के जैसे सुकुमार एवं चिकने होते हैं नख इनके कर्कश होते हैं और प्रशस्त वैडूर्यमणि के जैसे चमकीले होते हैं । 'विसालपीवरोल्परिपुण्णविउलखंधाणं, मिउविसयपसत्थसुहुमलक्खणविच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं' इनकी दोनों जंघाएं प्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिधणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं (महुगुलिय पिंगलक्खाणं) थिरलट्ठ (पउट्ठ) वट्ट पीवरसुसिलिट्ठ तिक्खदाढाविडंबितमुहाणं' એ સિંહો સફેદ રંગના હોય છે. સુભગ હોય છે. જામેલા દહીને, ગાયના દૂધના ફીણનો, અને ચાંદીને સમૂહ, જેમ શંખ તલના જે નિર્મળ અને વિમલ હોય છે, અને તેને જે પ્રકાશ હોય છે એજ પ્રકાશ આ સિંહોને હોય છે. તેમની આંખે મધની ગોળી જેવી પીળા વર્ણની હોય છે. તેઓનું મુખ સ્થિર અનેકાંત એવા પ્રકોષ્ઠ વાળું અને પરસ્પર જોડાયેલ તીણી એવી દાઢેથી કે જે ઘણીજ મજબૂત હોય છે. तेनायी युत हाय छे. 'रत्तुप्पल पत्तमउयसुकुमालतालुजीहाणं पसंतसंतवेरुलियाभिसंतकक्कडनहाणं' तेमनी 0 सने तदु सास भणना २वी सभार અને ચિકણું હોય છે, તેઓના નખો કઠોર હોય છે. અને પ્રશસ્ત મણિના २१॥ यम४।२ हाय छे. 'विलासपीवरोरुपरिपुण्णविउलखंधाणं, मिउविसय पसत्थसुहमलक्खणविच्छिण्णकेसरसडोपसोभिताणं' भनी मन धाम वि जी० १२२ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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