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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.१०८ द्वीपसमुद्राणां नामसंख्या निरूपणम् ९२३ पन्नत्ता' हे भदन्त ! यदि तत्तन्नामाभिधानैः परित्रातुमिच्छेयम् तदा ते द्वीपा समुद्राश्च कियन्तः स्युःरिति प्रश्नः, समाधत्ते भगवान्-हे गौतम ! लोके यावन्ति शुभनामानि शंखचक्र-स्वस्तिक० यावन्त नीलादयः शुभवर्णाः मधुरादयः शुभरसाः शुभाः गंधाः स्पर्शाश्च एतावन्तः समुद्राद्वीपाश्च नामतः परिसंख्याताः। 'केवइयाणं भंते ! दीवसमुद्दा उद्धारसमएणं पन्नत्ता' हे भदन्त ! कियन्तो द्वीपाः समुद्राः ये खलु उद्धारसमयेन उद्धारपल्योपमसागरोपमप्रमाणेन प्रज्ञप्ताः ? गोयमा ! जावइया अडाइज्जाणं सागरोवमाण उद्धारसमया एवइया दीवसमुद्दा उद्धारसमएणं पन्नत्ता' भगवानाह-हे गौतम ! यावन्तोऽधतृतीयानां सागरोपमाणामुद्धारसमया: एकैकेन सूक्ष्मवालाग्रापहारसमयाः एतावन्तो द्वीपसमुद्रा उद्धारसमयेन प्रख्याताः। समुद्र कितने नाम वाले हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! जावइया लोगे सुभाणामासुभा वण्णा जाव सुभा फासा एवइया दीव समुद्दा नामधेएहिं पन्नत्ता' हे गौतम ! लोक में जितने शुभ नाम हैं शुभवर्ण शुभगन्ध, शुभस्पर्श हैं उतने ही नाम वाले द्वीप और समुद्र हैं। शंख, चक्र, स्वस्तिक, ये सब शुभ नाम हैं नील आदिक शुभवर्ण हैं. मधुर आदि शुभ रस हैं सुगन्धि रूप शुभगंध है मृदु आदि शुभ स्पर्श हैं 'केवइयाणं भंते ! दीव समुद्दा उद्धारसमएणं पण्णत्ता' हे भदन्त ! उद्धार पल्योपम के सागरोपम प्रमाण से कितने द्वीप समुद्र कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! जावइया अडाईजाणं सागरोवमाणं उद्धारसमया एवइया दीवसमुद्दा उद्धारसमएणं पन्नत्ता' हे गौतम ! अढाई उद्धार सागरोपम के जितने उद्धार समय होते हैं-एक एक सूक्ष्म वालों को निकालने के समय होते हैं-उतने इया लोगे सुभा णामा सुभा वण्णा जाव सुभा फासा एवइया दीवसमुद्दा नामधेएहिं पण्णत्ता' है गौतम! सोभारमा शुभ नाम। छ. शुभव, शुमान्य शुभ २५० છે. એટલાજ નામવાળા દ્વીપ અને સમુદ્રો છે. શંખ, ચક, સ્વસ્તિક એ બધા શુભ નામ છે. નીલ વિગેરે શુભ વર્ણ છે. મધુર વિગેરે શુભ રસ છે. સુગંધ રૂપ शुभम छ. भूविगेरे शुभ २५श छ. केवइयाणं भंते ! दीवसमुद्दा उद्धारसमएणं पण्णत्ता' है मापन या पक्ष्या५म सा॥१५५४ प्रमाथी टा द्वीप समुद्री वामां आवे छे. २मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ 'गोयमा ! जावइया अट्ठाइज्जाणं सागरोवमाणं उद्धारसमया एवइया दीवसमुद्दा उद्धार समएणं पण्णत्ता' 3 गौतम ! मढा धा२ साश५मना २६॥ धार સમય હોય છે એક એક સૂક્ષમ વાલેને કાઢવાને સમય હોય છે. એટલા જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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