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________________ ४८४ जीवाभिगमसूत्रे इलक्ष्णाः यावत-प्रतिरूपाः । तस्याः पुष्करिण्या बहुमध्यदेशभागे प्रासादावतंसकः क्रोशमध क्रोशश्चाऽऽयामविष्कम्भाभ्यां तदुपरि सिंहासनं तत्सिंहासनचतुर्दिक्षु -'अनाहत' देवस्य सामानिकाऽग्रमहिष्यनीकाऽऽनीकाधिपति षोडशात्मरक्षकदेवसहस्राणां यथायोग्यमासनसहस्राणि । 'जंबूएणं सुदंसणाए उत्तरपुरस्थिमेणं-जंव्बा सुदर्शनाया उत्तरपूर्वस्यामीशाने 'पढमं वणसण्डं पण्णासंजोयणाई ओगाहित्ता' प्रथम वनषण्डं पञ्चाशयोजनान्यवगाह, 'एस्थ णं चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पनत्ताओ' चतस्रोऽत्र नन्दापुष्करिण्यः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तद्यथा-सिरिकंता-सिरिमहिया सिरिचंदा-सिरिलया' श्रीकान्ता-श्रीमहिता श्रीचन्द्रा-श्रीनिलयाः 'तहेव पमाणं पांच सौ धनुष की है ये सव नन्दापुष्करिणियां अच्छा आदि विशेषणों वाली हैं । इन पुष्करिणियों में से प्रत्येक पुष्करिणी के ठीक मध्यभाग में एक २ प्रासादावतंसक है इनकी लम्बाई १ कोस की और चौडाई आधे कोश की है इन प्रत्येक प्रासादावतंसकों में एक २ अनाहत देव का सिंहासन है। इन सिंहासनों के चारों दिशाओं में अना. दृत देव के सामानिक देवों के अनाहत देव की अग्रमहिषियों के अनीकाधिपतियों के एवं १६ हजार आत्मरक्षक देवों के यथायोग्य हजारों आसन हैं। 'जंबूएणं सुईसणाए उत्तरपुरथिमेणं' जंबूसुदर्शना के ईशान कोण में 'पढमं वणसंढं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता एत्थ णं चत्तारि गंदाओ पुक्खरिणीओ पन्नत्ताओ' प्रथम वनषण्ड को ५० योजन पारकर के आगे चार नंदा पुष्करिणियां हैं। उनके नाम 'सिरिकता सिरिमहिया सिरिचंदा सिरिणिलया' श्रीकान्ता, श्रीमहिता, श्रीचंन्द्रा, और श्रीनिलया हैं । 'तहेव पमाणं तहेव पासायवडेंसओ' નંદા પુષ્કરિણીયે “અચ્છા વિગેરે વિશેષણોવાળી છે. આ પુષ્કરિણીમાંથી દરેક પુષ્કરિણીના બરાબર મધ્ય ભાગમાં એક એક પ્રાસાદાવતુંસક છે. તેની લંબાઈ ૧ એક કેસ–ગાઉ જેટલી છે. અને પહોળાઈ અર્ધા ગાઉ જેટલી છે. અને દરેક પ્રાસાદાવતંસકોમાં એક એક અનાદૃતદેવના સિંહાસન છે. એ સિંહાસનની ચારે દિશાઓમાં અનાહતદેવના સામાનિકદેવના અનાદત દેવની અગ્રમહિષિના અનીકાધિપતિના ૧૬ સોળ હજાર આત્મરક્ષક દેવના યથા योग्य हुन। आसन। छे. 'जंबूए णं सुदंसणाए उत्तरपुरथिमेणं' यूसुशनाना शान सुशामा ‘पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता एत्थणं चत्तारि गंदापुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ' पडसा वनमथी ५० यान५२ २१di यार नही धुरिणीय छे. तेना नामा ॥ प्रभार छ-'सिरिकता, सिरिमहिया, सिरिचंदा, सिरिणिलया' श्रीsial, श्रीभडित, श्रीयन्मने श्रीनिसय छे. 'तहेव पमाणं तहेव જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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