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________________ १९४ जीवाभिगमसूत्रे 'अट्ठ मंगला पन्नत्ता' अष्टावष्टौ मङ्गलकानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-स्वस्तिकश्रीवत्सनन्दिकावर्त-वर्द्धमान-भद्रासनकल शमत्स्य-दर्पणाख्यानि । 'तेसि णं मुहमंडवाणं पुरओ' तेषां खलु मुखमण्ड पानां पुरस्तात्, पत्तेयं पत्तेयं' प्रत्येकैकस्मिन्, 'पेच्छाघरमंडवा पन्नत्ता' प्रेक्षागृहमण्डपाः निर्मिताः, 'ते णं पेच्छाघरमंडवा' ते खलु प्रेक्षागृहमण्डपाः, 'अद्ध तेरस जोयणाई आयामेणं 'अर्द्धत्रयोदशयोजनानि दैयेण, 'दो दो जोयणाई उड्ड उच्चत्तेणं' द्वे द्वे योजने ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, 'जाव मणिफासो' यावन्मणिस्पर्शः प्रेक्षागृहमण्डपानां भूमिभागवर्णनं मणिस्पर्शवर्णनपर्यन्तं वक्तव्यमिति । 'तेसि णं बहुमज्झदेसभाए' तेषां खलु बहुसमरमणीयानां एवं भूमिभाग आदिकों का वर्णन जैसा पूर्व प्रकरण में किया जा चुका है वैसा ही करना चाहिये 'तेसिणं मुहमंडवाणं उवरि' इन मुखमंडपों के ऊपर के भाग में अर्थात् पत्तेयं पत्तेयं प्रत्येक प्रत्येक मुखमंडप के उपरितभाग में 'अट्टमंगला पन्नत्ता' आठ आठ मंगल द्रव्य कहे गये हैं। वे मंगलद्रव्य इस प्रकार से हैं १, स्वस्तिक२, श्रीवत्स ३, नन्दिकावर्त४, वर्द्धमानकर, भद्रासन६, कलश७, मत्स्य८, और दर्पण 'तेसिणं मुहमंडवाणं पुरओ' इन मुखमंडपों के आगे ‘पत्तेयं पत्तेयं' अर्थात् प्रत्येक मुखमण्डप के आगे 'पेच्छाघरमंडवा पन्नत्ता' प्रेक्षा गृह मण्डप बने हुए हैं-रंगशालाएं बनी हुइ है 'तेणं पेच्छाधरमंडवा' ये प्रत्येक प्रेक्षागृहमंडप 'अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं' १२॥ योजन के लम्बे हैं 'दो दो जोयणाई उडूं उच्चत्तेणं' तथा दो दो योजन की इनकी प्रत्येक की ऊंचाई हैं 'जाव मणिफासो' यहां प्रेक्षागृहों के भूमिभाग का वर्णन मणियों के स्पर्श के वर्णन तक जैसा पहिले किया કરવામાં આવેલ છે, એ જ રીતે કરવું જોઈએ. 'तेसिणं मुहमडवाणं उवरि' से भुभ भ पोनी ५२नमामा अर्थात् 'पत्तेय पत्तेय” १२३ ४२४ भु५ भंपन। ५२मामा 'अछु मगलगा पण्णत्ता' આઠ આઠ મંગલ દ્રવ્ય કહેલા છે, તે મંગલ દ્રવ્યના નામે આ પ્રમાણે છે. स्वस्ति: १, श्रीवत्स २, नवित 3, पद्धमान४ ४, मद्रासन ५, ४१०१, मत्स्य ७, भने ६५५ ८, 'तेसि णं मुहमंडवाणं पुरओ' को भुभमपोनी 2011 'पत्तय पत्तेय' अर्थात् ४२४ भुपमपानी मा 'पेच्छाघरमडवा पन्नत्ता' प्रेक्षागड भयो मनेा छे. अर्थात् २॥ ॥ मनेर छ. 'तेणं पेच्छाघरमडवा' ये ६२४ प्रेक्षा भो ‘अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं' ७१ ॥२ योगनानी मावा छे. 'दो दो जोयणाई उड्ड उच्चत्तेणं' ते १२४नी या समयाननी छ. 'जाव मणिफासो' २मडीया प्रेक्षागृहाना भूमिमानुपाणुन भणियोना २५शन। वन सुधा २वी रीत पडदा ४२वामां मावेस छ. से प्रमाणे ४ सयु 'तेसिणं જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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