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________________ १०७२ जीवाभिगमसूत्रे सुकिल्ला' सौधर्मेशानकल्पयोः खलु भदन्त ! विमानानि कति वर्णानि ? भगवानाह -गौतम ! पञ्चवर्णानि तद्यथा-कृष्ण-नील-लोहित-हारिद्र-शुक्लानि । सनत्कुमार-माहेन्द्रयोविमानानि-'चउवण्णा नोला जाव सुकिल्ला' चतुर्वर्णानि नीले. भ्यो यावत् शुक्लानि ष्णवर्णाभावात्। 'बंभलोगलंतएसु वि तिवण्णा' ब्रह्मलोक - लान्तकयो लौंहितादि शुक्लान्तत्रिवर्णविमानानि-कृष्णनीलवर्णाभावात् । 'महासुक्क सहस्सारेसु दुवण्णा हालिद्दा य-सुकिल्ला य' महाशुक्रसहस्रारयो विवर्णानि-लोहितानि-शुक्लानि च, कृष्णनीलहारिद्राभावात् । 'आणतपाणतारणाच्चुएसु सुकिल्ला' आनत-प्राणता-ऽऽरणा-ऽच्युतकल्पेषु शुक्लानि एकवर्णानि । 'गेवेज्जविमाणा गये है० 'तं जहा' जैसे वे किण्हा' कृष्ण वर्ण वाले भी कहे गये है, नीलवर्ण वाले भी कहे गये है लोहित वर्ण वाले भी कहे गये है हारिद्र वर्ण वाले भी कहे गये है और शुक्ल वर्ण वाले भी कहे गये है। 'सणंकुमारमाहिंदेसु चउवण्णा' सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के विमान चार वर्ण वाले कहे गये है जैसे वे नील वर्ण वाले भी होते है यावत् शुक्ल वर्ण वाले भी होते है यहां कृष्ण वर्ण वाले विमान नहीं हैं। 'बंभलोगलंतएसु वि तिवण्णा' ब्रह्मलोक और लान्तक इन कल्पों में विमान 'ति वण्णा' तीन वर्ण वाले कहे गये हैं और ये 'लोहिया जाव सुक्किल्ला' लोहित वर्ण से लेकर शुकल वर्ण तक के वर्णों वाले होते हैं 'महासुक्कसहस्सारेसु दुवण्णा' महाशुक्र और सहस्रार के विमान हारिद्र और शुक्ल इन दो वर्णों वाले होते हैं 'आणयपाणयारणच्चुएसु सुक्किल्ला' आनत प्राणत एवं आरण, अच्युत, इन कल्पों में विमान केवल एक शुक्ल वर्ण वाले ही होते કૃષ્ણ વર્ણવાળા પણ કહેવામાં આવેલ છે. નીલ વર્ણવાળા પણ કહેવામાં આવેલ છે. લાલવર્ણના પણ કહેવામાં આવેલ છે. હારિદ્ર–પીળા વર્ણના પણ કહેવામાં माता छ. अने श्वेत qष्णु ना ५ वामां मावेस छ. 'सणंकुमार माहिदेस चउवण्णा' सनभार भने माउन्द्र ४८५ना विमानो या वाणा वाम આવેલ છે. જેમકે નીલવર્ણ વાળા પણ હોય છે. યાવત્ શુકલવણ વાળા પણ डाय छे. मी या पृ १४ वा विमानात नथी. 'बंभलोयलंतएसु वि तिवण्णा' ब्रह्म मने दात से ४८पोमा विमान 'तिवण्णा' त्रय वा वाणा वामां आवेता छ, मने ये 'लोहिया जाव सुक्किल्ला' सास वर्ष थी सधन स३४ पण सुधीन। पर्चा पाडाय छे. 'महासुक्क सहस्सारेसु दवण्णा' मह। शु भने सहसार ४६५ना विमान २-पी॥ मने स३४ मा मे पाडाय छे. 'आणयपाणयारणच्चुएसु सुक्किल्ला' मानत, प्रात, જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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