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________________ ८६४ जीवाभिम अथ रक्तवर्णविषये श्रीगौतम : पृच्छति - 'तत्थ जे ते लोहियगा तणाय मणीय' तत्र तेषां तृणानां मणीनां च मध्ये यानि तानि लोहितानी तृणानि ये ते लोहिता मणयश्च तेसि णं अयमेयारूवे वष्णावासे पन्नत्ते' तेषां लोहिततृणमणीनां किम् अयम्- अनन्तरमुद्दिश्यमान एतावद्रूपो वक्ष्यमाणस्वरूपो वर्णावासः प्रज्ञप्तः कथितः, तदेव दर्शयति- ' से जहा णामए' तद्यथा नामकम् 'ससगरुहिरेइ वा' शशकरुधिरमिति वा, शशकः 'ससला' खरगोश इति प्रसिद्धस्तस्य रुधिरम् ' उरब्भरुहिरेइ वा' उरभ्ररुधिरमिति वा, उरभ्र ऊरणः 'घेटा' इति लोकप्रसिद्ध स्तस्य रुधिरम्, 'णररुहिरेइ वा' नररुधिरमिति वा 'बराहरु हिरेइ वा' वराहरुधिरमिति वा वराहो ग्रामशूकर स्तस्य रुधिरम् ' महिसरु हिरेइ वा' महिषरुधिरमिति वा, शशका दि महिषान्तानां रुधिराणि शेषजीवरुधिरापेक्षया उत्कटलोहितवर्णानि भवन्ति, तत एतेषामुपादानम् । 'बालिंदगोवएइ वा' बालेन्द्रगोपक इति वा बालेन्द्रगोपकः सद्यो जात इन्द्रगोपकः, स हि प्रवृद्धः सन् ईषद्रक्तो भवति ततो बालग्रहणम् इन्द्र गोपकः प्रथमप्रावृड्मावी कीटविशेषः । ' बालदिवागरेइ वा' बालदिवाकर इति वा, बालदिवाकरः प्रथम मुद्गच्छन् सूर्यः सचातीव रक्तवर्णो भवति तथोक्तम् अब श्री गौतमस्वामी लोहित वर्ण के विषय में पूछते है 'तत्थ णं जे ते लोहिया तणाय मणीय तेसिं णं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते' वहां जो लालवर्णवाले तृण और मणि कहे गये है उनका वर्णवास इस प्रकार होता है क्या ? ' से जहाणामए ससकरूहिरेइवा' जैसा शशक- खरगोश का रूघर लाल होता है। 'उरब्भरूहिरेइवा' जैसा घेटा का रूघिर लाल होता है । ' णररुहिरेइ वा' जैसा मनुष्य का रूधिर लाल होता है । 'वराहरु हिरेइ वा' जैसा सुकर का रूघिरलाल होता है । 'महिसरूहिरेइ वा' जैसा भैसा का रूघिर लाल होता । 'बालिंद गोयएति वा' जैसा लाल वाल प्रथमवर्षाकालभावी इन्द्रगोपककीट विशेष होता है बालदिवाग હવે શ્રીગૌતમસ્વામી લેાહિત લાલ વર્ણેના સંબંધમાં પ્રભુશ્રીને પ્રશ્ન કરતાં हे छेडे हे लगवन् तत्थ णं जे ते लोहियगा तणा य मणीय तंसिं णं अयमेयावे वणवा पण्णत्ते त्यां ने सास वर्गुवाजा थे। भने मशिया उद्या छे. तेनो वर्णावास - वर्शन या प्रमाणे होय छे ? ' से जहानामए ससकरुहिरे इवा' ससा नुं सोही भेवं खास होय छे, 'णररुहिरेइवा' मनुष्यनुं सोही भे सास होय छे. 'उरब्भरुहिरेइवा' घेटानुं सोही भेवु सात होय छे 'वराह रुहिरेइवा' वराह लुंडनु सोही भेषु सास होय छे, 'महिसरुहिरेइवा' लेंसनुं सोही भेवं सास होय छे. 'बालिंद गोवएइवा' पहेला वर्षाद्वना समयमां उत्पन्न थयेस पास 'द्र गोय डीट विशेष लेवा सास होय छे. 'बालदिवाक જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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