SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 809
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.५१ द्वीपसमुद्रनिरूपणम् ७९७ हे आयुष्मन् ! 'अस्सि तिरियलोए इत्यनेन स्थानं कथितम् 'असंखेज्जा' इत्यनेन संख्या कथिता, 'दुगुणा दुगुणं' इत्यादिना प्रमाणं कथितम्, 'संठाणओ' इत्यादिना संस्थानं कथितमिति । सम्प्रति-आकारभावप्रत्यवतारं विवक्षुरिदमाह-'तत्थ णं' इत्यादि, 'तत्य णं अयं जंबुद्दोवे णामं दीवे' तत्र-तेषु द्वीपसमुद्रेषु मध्ये खलु अयं यत्र वसामो वयं स जम्बूद्वीपो नाम द्वीपोऽस्ति । स कथं भूतः ? तत्राह-'दीवसमुदाणं' इत्यादि, 'दीव समुदाणं अभितरिए सब द्वीपसमुद्राणां सर्वाभ्यन्तरक'; सर्वा मना सामस्त्येन अभ्यन्तरः सर्वाभ्यन्तरः सर्वाभ्यन्तर एव सर्वाभ्यन्तरकः, तथाहिसर्वेऽपि शेषा द्वीपसमुद्राः जम्बूद्वीपादारभ्यागमकथितप्रकारेण द्विगुणद्विगुण विस्तरास्ततो भवति जम्बूद्वीपो द्वीपः सर्वाभ्यन्तरकः, अनेन जम्बूद्वीपस्यावस्थान कथितमिति । इममेव वर्णयति-'सव्वखुड्डाए' इत्यादि, अयं जम्बूद्वीपो द्वीपः 'सव्वखुड्डाए' सर्वक्षुल्लकः सर्वेभ्योऽपि द्वीपसमुद्रेभ्यः क्षुल्लको लघुरिति सर्व इस सूत्रपाठ द्वारा द्वीपसमुद्रों की संख्या प्रकट की है । 'दुगुणा दुगुणं' इस सूत्रपाठ द्वारा उनका प्रमाण बतलाया गया है 'संठाणओ' इस पद द्वारा उनका संस्थान कहा गया है 'तत्य णं अयं जंबुद्दोवे जामं दीवे दीवसमुद्राणं अभितरिए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्ल पूयसंठाण संठिते वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंटिते वटूटे' उन द्वीप समुद्रों के वीच में सबसे पहिला जम्बूद्वीप नामका द्वीप की जिसमें हमलोग रहते हैं इसीलिये इसे 'दीवसमुद्द णं अमितरिए' इस पद से विशेषित किया गया है क्योंकि समस्त द्वीपसमुद्र जम्बूद्वीप से लगाकर ही आगमोक्त प्रकार के अनुसार दुने२ विस्तारवाले प्रकट किया है। अब जम्बूद्वीप का वर्णन करते है। 'सव्वखुडडाए' यह जम्बूद्वीप सबसे छोटा है। 'सम्व. खुड्डाए' इस पद के द्वारा यह समझाया गया है। कि यह जम्बूद्वीप दुगुण" या सूत्रा द्वारा तमनु प्रमाण मतापामा मापे छे. 'सठाणओ' से ५४ द्वारा तेनु संस्थान से छे 'तत्थ ण अय' जंबुद्दीवे णाम दोवे दीवसमुदाण अभितरिए सव्वखुड्डाए बट्टे तेल्लापूय संठाणसंठिते वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिते वट्टे' से दी५ समुद्रोमा सौथी पडे। नदी नामने। बी५ २मा मापणे २खी छीमे तथा तने 'दीवसमुदाण अभितरिए' से ५४था વિશેષિત કરેલ છે. કેમકે સઘળા દ્વીપ અને સમુદ્રો જબૂદ્વીપથી આરંભીને જ આગમત પ્રકાર પ્રમાણે બમણ બમણા વિસ્તારવાળા બતાવેલ છે. दीपनु १ न. ४२१मा आवे छे. 'सव्वखुड्डाए' मा दीय सौथी नानी छ. 'सव्वखुड्डाए' मा ५४ वा से समलवामा माप्यु छ , જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy